बसंत पंचमी वसंत ऋतु का स्वागत, सरस्वती की पूजा का त्योहार है।
बसंत पंचमी
बसंत पंचमी कब मनाते हैं:
हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है।
बसंत पंचमी होली से चालीस दिन पहले मनाईं जाती है होली की तैयारियां भी इस दिन से शुरू हो जाती हैं
बसंत पंचमी को श्री पंचमी या सरस्वती पंचमी भी कहते हैं।
बसंत पंचमी क्यों मनाते हैं:
हिन्दू धर्म के लगभग सभी त्योहार प्राकृतिक, आर्थिक-सामाजिक और किसानों की जीवटता, खुशहाली व आपसी प्रेम सहयोग को दर्शाते हैं बसंत पंचमी भी उसमें से एक है।
मां सरस्वती के अवतरण दिवस के रूप में ज्ञान के उपासक सभी लोग इस दिन विद्या, ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा-आराधना करते हैं। मां सरस्वती को ज्ञान और वाणी की देवी माना जाता है मां सरस्वती को पीत रंग बहुत प्रिय होता है क्योंकि यह समृद्धि, प्रकाश, ऊर्जा और आशावाद का प्रतीक माना जाता है।
ऋतुओं के राजा बसंत ऋतु का आरंभ और शीत ऋतु की समाप्ति भी इसी दिन से होने लगती है। किसानों के खेतों में फसलें लहलहाने लगती हैं सरसों के पीले पीले फूल चमकने लगते हैं गेहूं और जौं पर बालियां आ जाती हैं आमों के पेड़ों का बौर एक नया अहसास कराता है।
बसंत पंचमी कैसे मनाते हैं:
मां सरस्वती की पूजा अर्चना कैसे करें
बसंत पंचमी की पूजा के लिए प्रातःकाल पवित्र नदी में या नहाने के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान कर के स्वच्छ पीले वस्त्र धारण कर लेते हैं। इसके बाद उत्तर दिशा में चौकी लगा लें और उस पर लाल व पीले वस्त्र बिछाकर मां सरस्वती की मूर्ति की स्थापना करें, उनके साथ गणेश जी की भी पूजा की जाती है। माता को पीले चंदन का टीका लगाएं हल्दी से रंगे अक्षत/ चावल चढ़ाएं।
माता को पीले पुष्प,सरसों, गेहूं आदि चढ़ाए जाते हैं पीले व्यंजनों का भोग लगाया जाता है मां सरस्वती की बसंत पंचमी कथा पढ़ें और आरती कर के आशीर्वाद लें। इसके अलावा मां को सिंदूर चढ़ाएं और श्रृंगार की बाकी वस्तुएं भी अर्पित करें।
मां सरस्वती की पूजा-अर्चना अपने घर, स्कूल, कॉलेज या कार्यस्थल पर भी करते हैं और मां से वाणी पर संयम, ज्ञान मांगते हैं।