रक्षाबंधन

रक्षाबंधन कब मनाते हैं?

हिंदू पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन का त्योहार प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है राखी भद्राकाल को ध्यान मे रख कर शुभ मुहूर्त में बांधीं जाए तो उसका विशेष लाभ मिलता है। रक्षाबंधन को राखी पूणिमा,अबितम, श्रावणी या ऋषि तर्पन भी कहा जाता है।

रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं ?

रक्षाबंधन पर्व का अर्थ एक ऐसा धागा जो रक्षा प्रदान करता हो। द्वापर युग में शिशुपाल वध के उपरांत भगवान श्री कृष्ण की तर्जनी उंगली में गहरी चोट आ गई जिसे देखकर द्रोपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया था इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को उनकी रक्षा का वचन दिया। उसी वचन के लिए भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी के चीरहरण के समय उनकी रक्षा की थी तब से इस त्यौहार को रक्षाबंधन के रूप में भाई की कलाई पर राखी बांधकर मनाया जाता है इस दिन बहनें अपने भाइयों की खुशहाली और स्वास्थ्य की कामना करती हैं और भाई भी उपहार स्वरूप कुछ प्रदान करके प्रतिज्ञा लेता है कि वह अपनी बहन की रक्षा करेगा।

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रक्षाबंधन के लिए पूजन सामग्री :

राखी - रेशम के धागे

आरती की थाली, घी का दीपक

रोली, कुमकुम, चावल, अक्षत, फूल

मिठाई या मिठा पकवान

रुमाल या छोटा तौलिया

रक्षाबंधन कैसे मनाते हैं :

राखी या रक्षासूत्र दाहिनी कलाई पर ही बांधना चाहिए क्योंकि शरीर, मन और आत्मा को नियंत्रित करने की क्षमता दाहिने हिस्से में अधिक होती है सभी बहनें शुभ काल में अपने इष्ट देव के आह्वान के साथ भाई को उचित दिशा में बिठाकर सिर को रूमाल या किसी कपड़े से ढककर कुमकुम, रोली अक्षत का टीका लगाते हैं अक्षत और फूल ऊपर भी छिड़कते हैं फिर भाई की दाहिनी कलाई पर राखी बांधी जाती है और आरती की थाली में घी का दीपक जलाकर आरती उतार कर बहनें मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराती हैं।

रक्षाबंधन पर बहने भाई को राखी बांधने के बाद ही खाने के लिए कुछ ग्रहण करतीं हैं भाई भी उपहार स्वरूप कुछ देकर बहनों का हर स्थिति में ख्याल रखने और रक्षा करने का बचन देकर आशीर्वाद लेते हैं।

आज के दिन कहीं कहीं प्रातःकाल में पुरोहित तथा आचार्य अपने यजमानों के यहां जाकर उन्हें रक्षा सूत्र या राखी बांधकर आशीर्वाद देते हैं।