छठ पूजा

छठ पूजा कब मनाते हैं ?

हिंदू पंचांग के अनुसार छठ पूजा का त्योहार वर्ष में दो बार आता हैं पहला चैत्र मास में दूसरा कार्तिक माह की शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर सप्तमी तक यह विशेष त्यौहार मनाया जाता है। यह दिपावली के छठे दिन मनाया जाता है।

छठ पूजा के दिन भगवान सूर्य और छठ मैया की पूजा की जाती है भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं छठ मैया जिन्हें षष्ठी देवी भी कहते हैं।

छठ पूजा क्यों मनाते हैं ?

पौराणिक कथानुसार राजा प्रियंवद और रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थी महर्षि कश्यप के कहने पर इन्होंने यज्ञ किया जिसके चलते उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई, लेकिन दुर्भाग्य वश पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। इससे विचलित होकर राजा-रानी ने अपने प्राण त्यागने की सोची तभी ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना वहां प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं, उनकी पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होगी, राजा प्रियंवद और रानी मालिनी ने देवी षष्ठी का व्रत-पूजन पूरे विधि विधान से किया जिससे उन्हें आशीर्वाद के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी इसीलिए तभी से छठ मैया की पूजा की जाने लगी है।

भगवान राम जब विजयादशमी के दिन लंकापति रावण का वध करने के बाद अयोध्या पहुंचे तो ऋषि-मुनियों ने रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए राजसूर्य यज्ञ का सुझाव दिया, यज्ञ को करने के लिए मुग्दल ऋषि को अयोध्या बुलाया गया उन्होंने माता सीता और भगवान राम को सूर्यदेव की उपासना करने को कहा माता सीता और भगवान राम ने आश्रम में छह दिन तक सूर्यदेव भगवान की पूजा-अर्चना की थी।

महाभारत काल के अनुसार, जब पांडव अपना सम्पूर्ण राज पाठ जुएं में हार गए थे तब द्रौपदी ने अपना सब कुछ वापस पाने के लिए छठ मैया का व्रत उपवास किया था उसके उपरान्त उन्हें सब कुछ वापस मिल गया था।

महाभारत युग में माना जाता है सूर्य पुत्र दानवीर कर्ण ने ही छठ पूजा की शुरुआत की थी कर्ण भगवान सूर्य के बहुत बड़े भक्त थे वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्‍य देते थे उनकी इसी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने कर्ण को महान योद्धा बनने का वरदान दिया था।


छठ पूजा का पर्व प्राकृतिक सौंदर्य के साथ मुख्य रूप से बच्चे की इच्छा रखने वाले और बच्चों के कुशल मंगल की कामना करने वाले लोग करते हैं। घर परिवार के सभी सदस्यों की सुरक्षा, स्वास्थ्य लाभ, सुख समृद्धि और कल्याण के लिए भी इस पर्व को किया जाता है। जिससे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।


छठ पूजन के लिए गंगा पूजन सामग्री :

दो बांस की टोकरियां, सूप

नए वस्त्र

पानी वाला नारियल

पांच गन्ने पत्ते लगे हुए

लोटा,थाली, गिलास,बड़ें दीपक

कच्ची हल्दी,अदरक,साबुत सुपाड़ी

सिंघाड़ा,केला,नाशपाती, मूली, केला, सेब,सुथनी-शकरकंद, शरीफा,

मीठा बड़ा नींबू

गेहूं और चावल का आटा व घी

शहद, मिठाई, गुड़,

दूध, चावल ( अक्षत)

पान के पत्ते-सुपारी,आम के पत्ते, फूल

रोली,चंदन, कुमकुम,लाल-पीला सिन्दूर, कपूर,घूपबत्ती,अगरबत्ती, माचिस

बाती,दीपक,घी


छठ पूजा कैसे मनाते हैं ?

छठ पूजा का यह त्यौहार चार दिन तक चलता है पहले दिन नहाय खाय के साथ दूसरे दिन खरना की पूजा पूरे दिन उपवास का पालन कर के की जाती है तीसरे दिन छठ मैया को प्रथम अर्घ्य दिया जाता है सूर्यास्त पर परिवार के साथ अस्त होते सूर्य को दूसरा अर्घ्य दिया जाता है चौथे दिन उगते हुए सूर्य को देखकर मां गंगा को अरग दिया जाता है।

छठ पूजा विधि विस्तार से इस प्रकार है पूजा का शुभ आरंभ नहाए खाए के द्वारा होता है इस दिन महिलाएं सुबह उठकर घर की साफ सफाई करती हैं उसके बाद स्नान कर अपने आप को पवित्र करती है फिर दाल, भात, साग और सब्जी में कद्दू जैसे स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं सबसे पहले माता छठ मैया को अर्पित किया जाता है उसके बाद व्रत रखने वाली महिलाएं उसे खाती हैं इसके बाद ही सभी लोगों में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।


छठ पूजा के दूसरे दिन खरना की पूजा विधि संपन्न की जाती है इस दिन महिलाएं पूरे दिन भर व्रत उपवास का पालन करती हैं और फिर संध्या के समय खीर, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसके बाद छठ मैया को भोग अर्पित किया जाता है और व्रत रखने वाली महिलाएं उसे खा कर अपना उस दिन का व्रत उपवास पूरा करतीं हैं फिर प्रसाद के रूप में इसे सभी घरों में वितरण किया जाता है घर पर लोगों को आमंत्रित कर के पूजा समाप्ति पर भोजन कराया जाता है।


तीसरे दिन छठ मैया को प्रथम अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन छठ मैया को भोग लगाने के लिए ठेकुआ और चावल के लड्डू बनाए जाते हैं साथ में पांच प्रकार के फल पूजा सामग्री के रूप में बनाकर रखा जाता है उसके बाद उन सभी पूजा सामग्री को सूप पर सजाएंगे और फिर उसे वांत की एक टोकरी में रख देंगे दोपहर के बाद से छठ मैया का डाला तैयार किया जाता है फिर गंगा घाट जाने की तैयारी शुरू हो जाएगी और घर के सभी लोग व्रत करने वाली लोगों के साथ चलेंगी और जब गंगा घाट पर पहुंचेंगे तो उसके बाद व्रती छठ घाट पर जाकर जल में कमर तक प्रवेश करते हैं और फिर अस्त होते सूर्य को दूसरा अर्घ्य देते हैं।

इस रात जागरण, धार्मिक कथाएं और भजन कीर्तन का आयोजन किया जाता है यह व्रत उपवास पूरी तरह से निर्जला व्रत होता है।


छठ पूजा व्रत के चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी तिथि को ब्रह्म मुहूर्त में छठ मैया का डाला सजाकर व्रती लोग छठ घाट पर व्रत रखने वाले गंगा जी में प्रवेश करते हैं और जब सूरज उदित हो रहा होता है तब उसे देखकर माता गंगा को अरग दिया जाता है उगते हुए सूर्य को व्रती अध्य देते हैं व्रत रखने वाली महिलाएं अपने बेटे और पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं उनके घर पर कोई समस्या ना आए उसके लिए माता छठ मैया से आशीर्वाद लेती हैं पूजा समाप्त होने के बाद सभी लोग घाट के ऊपर व्रत रखने वाली महिलाओं को मिठाई या गुड देकर उनका व्रत पूरा करवाते हैं।

व्रत की समाप्ति पर व्रती महिलाओं द्वारा दूध पीकर पहले गले को तर कर लिया जाता है क्योंकि छत्तीस घंटे से निर्जला उपवास के कारण गला छिलने की सम्भावना रहती है फिर सभी लोग वापस घर आकर सभी लोगों को प्रसाद का वितरण करते हैं और घर में विभिन्न सब्जियों को मिलाकर सब्जी और चावल बनाया जाता है उसे व्रत रखने वाली महिलाओं को प्रसाद के रूप में खिलाया जाता है। और छठ मैया के लोक गीत गाए जातें हैं।