दीपावली

दीपावली कब मनाते हैं ?

हिंदू धर्म के अनुसार समुद्र मंथन के समय कार्तिक मास की अमावस्या तिथि के दिन मां लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई थी इसलिए मां लक्ष्मी का जन्मदिन और उनकी पूजा दीपावली के दिन की जाती है।


दीपावली क्यों मनाते हैं ?

तमसो मा ज्योतिर्गमय अर्थात् अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला पर्व ही दीपावली, दीपों का उत्सव " दीपोत्सव" कहलाता है।

पौराणिक काल से ही कई शुभ कार्य आज के दिन ही सम्पन्न हुए हैं जो दीपावली की महत्ता को और अधिक दर्शाते हैं।

देवी मां लक्ष्मी और भगवान श्री विष्णु का विवाह इसी दिन होना बताया गया है। देवी मां लक्ष्मी को धन-संपदा के रूप में पूज कर सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।

राजा महाबली और भगवान श्री विष्णु की कथा।

मां देवी के रौद्र रूप महाकाली का रूप ले कर राक्षसों के वध की कथा।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार अन्याय पर न्याय, बुराई से अच्छाई की ओर ले जाने वाले इस शुभ दिन भगवान श्री राम ने लंका नरेश रावण का वध करके चौदह वर्ष के वनवास उपरांत पत्नी सीता, भ्राता लक्ष्मण और पवनसुत हनुमान जी के साथ अयोध्या पधारे थे। अयोध्या वासियों ने भी अपने घरों को दीपों से जगमगा कर स्वागत सत्कार किया था। तभी से यह त्यौहार दीपावली के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाने लगा है।


दीपावली के लिए पूजन सामग्री

माता लक्ष्मी और गणेश जी, विष्णु भगवान, माता सरस्वती, कुबेर जी की मूर्ति

रोली, अक्षत, आरती की थाली

मिट्टी के दिए, कुल्लिये, बड़े दिये

रुई की बाती, घी - सरसों का तेल

खील - बताशे, मीठे खिलोने।

दीपावली कैसे मनाते हैं:

दीपावली की तैयारी कई दिन पहले से ही शुरू हो जाती है घर, दुकान, व्यापारिक अनुष्ठानों की साफ-सफाई, रंगाई-पुताई की जाती है घरों को रंग बिरंगी लाईटों और फूल मालाओं से सजाया जाता है घर के मुख्य द्वार या आंगन में रंगोली बनाते हैं पकवान बनाए जाते हैं। शाम को शुभ मुहूर्त में परिवार के सभी सदस्य पारंपरिक वस्त्र पहन कर पूजन के लिए घर पर मन्दिर के सम्मुख एकत्र होकर चौकी लगाते हैं।

चौकी लगाने के लिए पानी में थोड़ा सा सेंधा नमक डाल कर उस जगह को अच्छे से साफ कर लेना चाहिए क्योंकि लक्ष्मी मैया को स्वच्छता अत्यधिक प्रिय होती है उसके बाद वहां पर जैसी भी आपको रंगोली बनानी आती है वैसी रंगोली आवश्यक रूप से बनायें तब आप चौकी लगायें, चौकी के ऊपर लाल पीला वस्त्र बिछा लीजिए चौकी इस प्रकार से लगाए कि पूजा करने वाले का मुख उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। दिपावली के दिन कलश की स्थापना करना बहुत जरूरी होता है क्योंकि दीपावली की पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। पीले चावल से चौकी के ऊपर अष्टदल कमल बना लीजिए क्योंकि कमल माता महालक्ष्मी को अत्यधिक प्रिय होता है आप कोई भी मिट्टी का,पीतल का तांबे का या फिर किसी भी धातु का कलश ले सकते हैं उसके ऊपर स्वास्तिक बना लें उसके कंठ में मौली बांध कर थोड़ा सा गंगाजल डाल लें उसके बाद कंठ तक उसमें शुद्ध जल भर दीजिए, उसके अंदर कुछ चीजे डाली जाती हैं जैसे की लौंग, इलाइची, सिक्का, सुपारी, हल्दी की गांठ, एक कमल गट्टा डालेंगे कोड़ी, गोमती चक्र, सात प्रकार की मिट्टी, सर्व औषधि, पुष्प, अक्षत, दूर्वा आप यहां पर डाल सकते हैं इसमें आप पंच पल्लव आम के अशोक के लगा सकते हैं पान के पत्ते भी लगा सकते हैं।

दीपावली का पूजन शाम को प्रदोष काल के शुभ मुहूर्त में होता है एक पात्र या प्लेट में चावल भर के रख दें कोई अन्य अनाज भी आप रख सकते हैं। एक नारियल उसके ऊपर चुनरी और कलावा लपेट कर कलश के ऊपर स्थापित कर देते हैं। उसके बाद जो धातु की मूर्तियां है इन्हें अच्छी प्रकार से गंगाजल से स्नान करवायें आप चाहे तो पंचामृत से भी स्नान कर सकते हैं यदि आपकी मूर्तियां मिट्टी की है या फिर आपकी कागज़ की तस्वीर है तो आप गंगाजल का छींटा देकर के भी शुद्धिकरण कर सकते हैं उसके बाद सभी को टीका लगाकर फूल माला अर्पित करेंगे अगर आप अष्ट दल कमल नहीं बन पा रहे हैं तो कलश के नीचे सप्तधान भी रख सकते हैं यहां पर नवग्रह की स्थापना करेंगे,आप चाहे तो नवग्रह यंत्र भी रख सकते हैं जो भी आपके घर में धन हो या कैश हो कुछ सोने, चांदी की वस्तु हो उनका भी पूजन करें जो भी नए बर्तन या नई चीज या नई झाड़ू धनतेरस पर लेकर आए हैं उसको भी पूजा में आवश्यक रूप से रखा जाता है उसका भी पूजन किया जाता है।

यहां पर एक बड़ा सा दीपक रखते है जो अखण्ड जलता है|

हाथ में अक्षत पुष्प लेकर के हम सभी देवी देवताओं को आवाहन करेंगे और उनसे प्रार्थना करेंगे कि वह हमारा पूजन स्वीकार करें इस प्रकार से अक्षत पुष्प एक पात्र में छोड़ देते हैं इस तरीके से परिवार के सभी सदस्य मिलकर के इस पूजन को करे यहां पर हम वस्त्र के रूप में कलवा अर्पित कर देंगे, इस तरीके से देवी देवताओं का पूजन करने के बाद में सभी टीका करें हाथ में कलावा धारण करें, अक्षत से रोली से और चंदन से इस प्रकार से सभी को टीका करेंगे, जो भी हमने कुबेर पोटली धन वर्षा पोटली बनाई है उसका भी हम अक्षत, पुष्प, रोली, हल्दी, चंदन से पूजन करेंगे दीप भी दिखाएंगे अच्छे प्रकार से और यहां पर कौड़ी, गोमती चक्र और कमलगट्टे का भी पूजन करेंगे क्योंकि यह धन सूचक वस्तुएं होती है और जो दीपक हमने प्रज्वलित किया है उसका भी पूजन करेंगे, फूल जो आपके पास हो आप वह यहां पर अर्पित कर दीजिएगा गणेश जी को लाल पुष्प सरस्वती मैया को सफेद पुष्प इस प्रकार से अर्पित करें और देखें माता लक्ष्मी को अर्पित किया जाता है कमल का पुष्प तो हो सके तो कमल का पुष्प अवश्य रूप से अर्पित करें नहीं मिल पाता है तो आप गुलाब के पुष्पीय अर्पित कर सकते हैं। उसके बाद में माता को चुनरी, सुहाग की सामग्री आवश्यक रूप से लक्ष्मी मैया को अर्पित करें उसके बाद में सप्तधान, धनिया अर्पित करें।

भोग, प्रसाद के लिए कोई भी मिठाई, खील बताशे, चीनी के बने हुए खिलौने, मौसमी फल अर्पित करें उसके बाद इक्कीस या इक्यावन दिए जलाएं जाते हैं, यहां पर कम से कम पांच दिए तो देसी घी के जलाए जाते हैं बाकी सरसों के तेल के आप जला सकते हैं सारे दिए तैयार करके घर में बाकी जगह पर रखें जाते हैं माता लक्ष्मी को हल्दी कुमकुम अत्यधिक प्रिय होता है तो आप किसी भी दिए में भरकर के या किसी भी कटोरी में भरकर के माता को हल्दी कुमकुम अर्पित करें जिसे बाद में आप प्रयोग में ला सकते हैं उसके बाद में दीपावली की कथा अवश्य रूप से सुननीं चाहिए ।

माता महालक्ष्मी की कथा संपूर्ण होने के बाद कपूर से आरती करेंगे। शांत मन से हमें माता की आरती उतारनी चाहिए इसी प्रकार से गणेश जी की आरती करेंगे माता महालक्ष्मी की आरती करेंगे और उसके बाद में हम क्षमा प्रार्थना जरूर करेंगे।

विष्णु भगवान का पूजन कर सकते हैं यहां पर गणेश चालीसा का पाठ, लक्ष्मी चालीसा, सरस्वती चालीसा, विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ कर सकते हैं कनकधारा स्त्रोत का पाठ भी कर सकते हैं। लक्ष्मी जी का कोई भी मंत्र जो आपको आता है उसे भी जप कर सकते हैं तो इस तरीके से हमें दीपावली पर पूजन करना होता है।