शारदीय नवरात्री

शारदीय नवरात्रि कब मनाईं जाती है ?

हिन्दू पंचांग के अनुसार नवरात्रि वर्ष में चार बार आती है उसमें से दो गुप्त नवरात्रि आषाढ़ और माघ मास में होती है और दो उजागर नवरात्रि चैत्र व अश्रि्वनी मास में होती हैं जिन्हें बहुत श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है।

पहली चैत्र नवरात्रि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से नवमी तिथि को जो अप्रैल - मई में होती है।

दूसरी शारदीय नवरात्रि अश्विन मास के शुक्ल पक्ष, सितंबर - अक्टूबर में प्रतिपदा से नवमी तिथि तक नौ दिन नवरात्रि मनाईं जाती है। दसवीं को विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है।

शारदीय नवरात्रि क्यों मनाई जाती हैं ?

हिंदू धर्म में नवरात्रि के दौरान साधना और उपासना करना सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। मान्यता है की सामान्य दिनों में किसी भी साधना में सिद्धि हासिल करने के लिए कम से कम चालीस दिनों की आवश्यकता होती है। वहीं नवरात्रि में नौ दिन ही अनुष्ठान में सफलता हासिल करने के लिए पर्याप्त होते हैं।

मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था

शारदीय नवरात्रि में प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है दसवें दिन विजयदशमी या दशहरे का त्योंहार धूमधाम से मनाया जाता है क्योंकि मां दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिनों तक युद्ध किया था और दसवें दिन राक्षस का वध किया था उसके बाद से मां दुर्गा को महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की नौ दिन तक पूजा की जाती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। मां दुर्गा को शक्ति की उपासना का प्रतीक माना जाता है।

त्रेता युग में भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था।

भगवान श्रीरामजी ने बुराइयों से युक्त रावण का वध कर बुराई पर अच्छाई की जीत प्राप्त की थी इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए नारद मुनि ने श्रीराम से नवरात्रि व्रत का अनुष्ठान करने का अनुरोध किया था तब समुद्र के किनारे शारदीय नवरात्रों पर भगवान श्री राम ने लगातार नौ दिनों तक शक्त‍ि की पूजा उपासना की थी और व्रत को पूर्ण करने के बाद दसवीं तिथि को भगवान श्री राम ने लंका पर आक्रमण कर रावण का वध किया और लंका पर विजय प्राप्त की थी, तभी से दशहरा मनाया जाने लगा। नवरात्रि व्रत को कार्यसिद्धि के लिए किया जाता रहा है।

नवरात्रि के यह पावन दिन शुभ कार्यों के लिए बेहद ही उत्तम माने जाते हैं। इन दिनों कई शुभ कार्य किए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि की इन नौ तिथियों में बिना मुहूर्त देखे कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। इन्हीं दिनों में अक्सर लोग नया व्यापार शुरू करते हैं, विवाह संस्कार के साथ सभी संस्कार किये जाते हैं नए घर, दुकान व्यापारिक प्रतिष्ठानों में यज्ञ, पूजा-अर्चना के साथ कार्य का शुभारंभ करते हैं।

नवरात्रि की पूजा कैसे की जाती है :

मां दुर्गा की पूजा-उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्रि आरंभ हो गए हैं। घर में पूजा करते हैं तो इसके लिए आपको कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। आपकों बताते हैं कि घर में पूजा करने की विधि और पूजन सामग्री क्या है।

नवरात्रि पूजन सामग्री:

कलश स्थापना के लिए सामग्री

कलश, मौली, आम के पत्ते का पल्लव ( आम के पांच पत्ते की डली), रोली, गंगाजल, सिक्का, गेहूं या अक्षत,

ज्वार बोने के लिए सामग्री, मिट्टी का बर्तन, शुद्ध मिट्टी, गेहूं या जौ, मिट्टी पर रखने के लिए एक साफ कपड़ा, साफ जल, और कलावा।

अखंड ज्योति के लिए:

पीतल या मिट्टी का दीपक, घी, रूई बत्ती, रोली या सिंदूर, अक्षत आदि।

नौ दिन के लिए हवन सामग्री:

नवरात्रि पर भक्त पूरे नौ दिन तक हवन करते हैं। इसके लिए हवन कुंड, आम की लकड़ी, काले तिल, रोली या कुमकुम, अक्षत(चावल), जौ, धूप, पंचमेवा, घी, लोबान, लौंग का जोड़ा, गुग्गल, कमल गट्टा, सुपारी, कपूर, हवन में चढ़ाने के लिए भोग,आचमन के लिए शुद्ध जल।

माता रानी का श्रृंगार सामग्री:

लाल चुनरी, चूड़ी, इत्र, सिंदूर, महावर, बिंदी, मेहंदी, काजल, बिछिया, माला, पायल, लाली व अन्य श्रृंगार के सामान।

कलश स्थापना पूजा विधि :

नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर गंगाजल मिले जल से स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

कलश स्थापना के लिए पूजा की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं, अक्षत से अष्टदल बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा विराजमान करें, मां को चुनरी ओढ़ाएं।

इसके बाद कलश में पानी, गंगाजल, सिक्का, रोली, हल्दी गांठ, दूर्वा, सुपारी डालकर, कलश में आम के पांच पत्ते रखकर उसे ढक दें और ऊपर से नारियल में चुनरी लपेट कर कलावा से बांधकर रखें और।कलश स्थापित करें। कलश हमेशा उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में स्थापित करें।

माता दुर्गा जीऔर नवग्रहों का आवाहन करें फिर विधि-विधान से देवी की पूजा करें।

एक पात्र में स्वच्छ मिट्टी डालकर सात प्रकार के अनाज बोएं और चौकी पर रख दें

नौ दिन तक जलने वाली माता की अखंड ज्योत जलाएं।

देवी मां को तिलक, काजल लगाएं। रोली और अक्षत से टीका करें धूप, दीपक जलाएं।

मां दुर्गा को वस्त्र, चंदन, सुहाग के सामान यानी हल्दी, कुमकुम, सिन्दूर, अष्टगंध आदि अर्पित करें।

मंगलसूत्र, हरी चूड़ियां, फूल माला, इत्र, फल, मिठाई आदि अर्पित करें।

दुर्गा सप्तशती के पाठ, देवी मां के स्तोत्र, सहस्रनाम आदि का पाठ करें। और देवी मां की आरती करें।

वेदी पर बोए जौ के पात्र में जल का हल्का छिड़काव करें। यह अंकुरित जौ शुभ माने जाते हैं।

मां के निम्न नौ रूपों और मंत्रों का जाप करने पर उनकी पूजा से विशेष लाभ होता है।

मां शैलपुत्री

शैलपुत्री मां दुर्गा का प्रथम स्वरुप हैं। मान्यता है कि शक्ति की प्रथम उत्पत्ति शैलपुत्री के रूप में ही हुई थी। मां के सामने धूप, दीप जलाएं और देसी घी का दीपक जलाकर मां की आरती उतारें। इसके बाद शैलपुत्री माता की कथा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा चालीसा का पाठ करें। इस दिन मां को गाय के घी से बनी सफेद चीजों का भोग लगाएं। इसके बाद शाम के समय मां की आरती कर उनका ध्यान करें।

मंत्र- ऊं शैलपुत्र्यै नम:।

मां ब्रह्मचारिणी

नवरात्रि के दूसरे दिन मां भगवती के द्वितीय रूप ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा की जाती है। सुबह पूजा के समय अपने हाथों में एक फूल लेकर देवी का ध्यान करें। इसके बाद उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं, फूल, कुमकुम, सिंदूर अर्पित करें। देवी को सफेद और सुगंधित फूल प्रिय हैं। आप कमल का फूल भी चढ़ा सकते हैं।

मंत्र – ऊँ ब्रह्मचारिण्यै नम:

दूसरा मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

मां चंद्रघंटा

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा के रूप की पूजा की जाती है। सबसे पहले देवी को गंगा जल से स्नान कराएं। इसके बाद धूप-दीप, रोली, फूल, फल अर्पित करें। इसके बाद मां का ध्यान करें और मन में ऊं चंद्रघण्टायै नम: का जप करते रहें।

मंत्र- पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता.

प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

मां कूष्मांडा

नवरात्रि के चौथे दिन कलश की पूजा कर माता कूष्मांडा को नमन करें। इसके बाद मां को जल और पुष्प अर्पित करें। पूजा में बैठने के लिए हरे रंग के आसन का इस्तेमाल करें। इस दिन मां को कद्दू के हलवे का भोग लगाएं।

मंत्र- ऊं कूष्माण्डायै नम:

दूसरा मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

मां स्कंदमाता

नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। गंगाजल से शुद्धिकरण करें। देवी का ध्यान करें। स्कंदमाता की उपासना करने से मनुष्य की सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती है। माता स्कंदमाता को केला प्रिय है। इस दिन मां को केले का भोग जरुर लगाएं।

मंत्र- या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

दूसरा मंत्र- ऊं स्कंदमात्र्यै नम: ।।

मां कात्यायनी

नवरात्र के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस दिन पूजा करते समय लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें। गंगाजल से शुद्धी करें। मां के सामने घी का दीपक जलाएं और पुष्प चढ़ाएं। मां को पीले रंग के फूलों के साथ कच्ची हल्दी की गांठ भी चढ़ाएं।

मंत्र – या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

दूसरा मंत्र – ऊं स्कन्दमात्र्यै नम:

मां कालरात्रि

सातवें दिन मां कालरात्रि की आराधना करना चाहिए। मां को कुमकुम, लाल पुष्प, रोली आदि चढ़ाएं। इसके बाद मां को नींबूओं की माला पहनाएं और उनके सामने दीपक जलाकर उनका पूजन करें। मां के मंत्रों का जाप करें या सप्तशती का पाठ करें। मां कालरात्रि को लाल रंग के फूल अर्पित करें। माता कालरात्रि को गुड़ या उससे बनी चीजों का भोग लगाना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

ॐ कालरात्र्यै नम:

मां महागौरी

नवरात्र के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा करनी चाहिए। इस दिन सबसे पहले चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर महागौरी यंत्र की स्थापना करें। मां महागौरी की पूजा करते समय पीले या सफेद रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं। महागौरी के दिन हवन-यज्ञ का विशेष महत्व होता है। महागौरी को हलवा और चने का भोग लगाना चाहिए।

मंत्र- श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

दूसरा मंत्र – ऊं महागौयैं नम:

मां सिद्धिदात्री

मां जगदंबा का नौवां रूप पूर्ण स्वरूप है। पहले दिन जो पूजा अर्चना शैलपुत्री के रूप में की गई थी वह सिद्धिदात्री के रुप पर आकर पूर्ण हो जाती है। इस दिन सबसे पहले कलश की पूजा और पूजा स्थल पर सभी देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। ऊसके बाद माता के मंत्रो का जाप कर उनकी पूजा करनी चाहिए। आप अपनी इच्छानुसार नौमी के दिन हवन-यज्ञ भी कर सकते हैं।

मां सिद्धिदात्री को मौसमी फल, पूड़ी, खीर, नारियल, चना, और हलवा का भोग लगाना चाहिए। कन्याओं का भी पूजन किया जाता है उन्हें प्रसाद खिलाया जाता है।

मां दुर्गा की आरती करनी चाहिए

मंत्र- या देवी सर्वभू‍तेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

दूसरा मंत्र- ऊं सिद्धिदात्र्यै नम:।

दसवीं तिथि को ही मां दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन के साथ नवरात्रि सम्पन्न होती है

दसवें दिन विजयदशमी या दशहरा की पूजा-अर्चना की जाती है। जिसे विजयदशमी कैसे मनाते हैं में विस्तार से बताया गया है।

विजयादशमी का पर्व माता दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध करने के कारण मनाया जाता है जो कि श्रीराम के काल के पूर्व से ही प्रचलन में रहा है।