हिंदू पंचांग के प्रमुख पंचमी व्रत

हिंदू पंचांग में कितनी प्रमुख पंचमी

हिंदू धर्म के अनुसार कितनी प्रमुख पंचमी होती है—------

हिंदू पंचांग के अनुसार पूर्णिमा और अमावस्या के बाद आने वाली पांचवीं तिथि को पंचमी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद आने वाली पंचमी को कृष्ण पक्ष की पंचमी और अमावस्या के बाद आने वाली पंचमी को शुक्ल पक्ष की पंचमी कहते हैं।

हिंदू धर्म में मुख्यतः चार पंचमी का विशेष महत्व होता हैं-

-बसंत पंचमी माघ मास जनवरी-फरवरी

-रंग पंचमी चैत्र मास मार्च-अप्रैल

-नाग पंचमी श्रावण मास जुलाई-अगस्त

-ऋषि पंचमी भाद्र पद मास अगस्त- सितम्बर


बसंत पंचमी

बसंत पंचमी कब मनाते हैं ?

हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने (जनवरी-फरवरी) के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है।

बसंत पंचमी होली से चालीस दिन पहले मनाईं जाती है होली की तैयारियां भी इस दिन से शुरू हो जाती हैं।

बसंत पंचमी को श्री पंचमी, ज्ञान पंचमी या सरस्वती पंचमी भी कहते हैं।


बसंत पंचमी क्यों मनाते हैं ?

बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा क्यों मनाते हैं?

हिन्दू धर्म के लगभग सभी त्योंहार प्राकृतिक, आर्थिक-सामाजिक और किसानों की जीवटता, खुशहाली व आपसी प्रेम सहयोग को दर्शाते हैं बसंत पंचमी भी उसमें से एक है।

मां सरस्वती के अवतरण दिवस के रूप में ज्ञान के उपासक सभी लोग इस दिन विद्या, ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा-आराधना करते हैं। मां सरस्वती को ज्ञान और वाणी की देवी माना जाता है मां सरस्वती को पीत रंग बहुत प्रिय होता है क्योंकि यह समृद्धि, प्रकाश, ऊर्जा और आशावाद का प्रतीक माना जाता है।

ऋतुओं के राजा बसंत ऋतु का आरंभ और शीत ऋतु की समाप्ति भी इसी दिन से होने लगती है। किसानों के खेतों में फसलें लहलहाने लगती हैं, सरसों के पीले पीले फूल चमकने लगते हैं गेहूं और जौं पर बालियां आ जाती हैं, आमों के पेड़ों का बौर एक नया अहसास कराता है।

इस दिन विद्या की देवी सरस्वती, कामदेव और विष्णु की पूजा की जाती है यह पूजा विशेष रूप से भारत, बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है।


बसंत पंचमी कैसे मनाते हैं:

मां सरस्वती की पूजा अर्चना कैसे करें:

बसंत पंचमी की पूजा के लिए प्रातःकाल यदि सम्भव हो तो पवित्र नदी में स्नान करें या नहाने के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान कर के स्वच्छ पीले वस्त्र धारण कर लेते हैं। इसके बाद उत्तर दिशा में चौकी लगा लें और उस पर लाल व पीले वस्त्र बिछाकर मां सरस्वती की मूर्ति स्थापना करें, उनके साथ गणेश जी की भी पूजा की जाती है। माता को पीले चंदन का टीका लगाएं हल्दी से रंगे अक्षत/ चावल चढ़ाएं।

माता को पीले पुष्प,सरसों, गेहूं आदि चढ़ाए जाते हैं पीले व्यंजनों का भोग लगाया जाता है मां सरस्वती की बसंत पंचमी कथा पढ़ें और आरती कर के आशीर्वाद लें। इसके अलावा मां को सिंदूर चढ़ाएं और श्रृंगार की बाकी वस्तुएं भी अर्पित करें।

मां सरस्वती की पूजा-अर्चना अपने घर, स्कूल, कॉलेज या कार्यस्थल पर भी करते हैं और मां से वाणी पर संयम और ज्ञान मांगते हैं।


बसंत पंचमी का वैज्ञानिक महत्व–

हिंदू धर्म के सभी त्योहार प्रकृति से प्रेरित होते हैं बसंत पंचमी में पीले रंग का विशेष महत्व होता है, प्रकृति भी सरसों, गेंदें आदि के पीले फूलों के माध्यम से मानव के जीवन में उत्साह का आगमन करतीं हैं, क्योंकि पीला रंग चमकीला,आनंद, खुशी, ऊर्जा और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। जो शरीर में रक्त संचार को बढ़ाकर मस्तिष्क के दायें भाग को, दृष्टि को, स्मरण शक्ति को उन्नत करके आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायक होता है।


रंग पंचमी

रंग पंचमी कब मनाते है ?

हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह ( मार्च अप्रैल) के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को रंग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है।

रंग पंचमी का त्योहार पांच दिवसीय होली उत्सव चक्र, होलिका दहन के पांच दिन बाद आता है।

रंग पंचमी क्यों मनाते हैं ?

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार द्वापर युग में होली के पांचवें दिन चैत्र कृष्ण पंचमी को भगवान श्री कृष्ण ने राधा जी को रंग लगाया था। उसके बाद ही रंग पंचमी मनाई जाती है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रासलीला करने के बाद पंचमी के दिन रंग गुलाल खेलने का उत्सव मनाया था।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में मौजूद ग्रह दोष खत्म हो जाते हैं। देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती है। व्यक्ति के अवगुणों का नाश होकर सतगुणों में वृद्धि होती है

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार शिव जी ने होलाष्टक के दौरान कामदेव को भस्म कर दिया था, तब देवताओं में बहुत निराशा पैदा हो गई। देवताओं के आग्रह पर शिवजी ने कामदेव को जीवित करने का आश्वासन दिया,इस कारण चारों ओर खुशियां छा गईं।तब चैत्र कृष्ण पक्ष पंचमी के दिन देवी देवताओं ने रंगोत्सव मनाया। इसके बाद से ही रंगपंचमी के दिन देवी देवताओं के होली खेलने की परंपरा शुरू होई। माना जाता है कि इस दिन देवता पृथ्वी पर आते हैं और मनुष्यों के साथ रंग खेलते हैं।

पौराणिक ग्रंथ दर्शाते हैं कि

भगवान श्रीकृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध फाल्गुन पूर्णिमा के दिन किया था। तब नंदगांव वासियों ने प्रसन्नता में पांच दिन तक उत्सव मनाया और रंग गुलाल खेला। जो रंग पंचमी की परंपरा बन गई।

ग्रन्थ दर्शाते हैं कि भक्त प्रह्लाद के राज्याभिषेक के उल्लास में जनता ने चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से पंचमी तक होली खेलकर रंगपंचमी उत्सव मनाया था।


रंग पंचमी कैसे मनाते हैं :

रंग पंचमी का पर्व समभाव, एकरूपता को दर्शाता है, क्योंकि मनुष्यों द्वारा

पवित्र मन से देवी-देवताओं का आह्वान करके उनकी आराधना की जाती है, और वह आशीर्वाद देने के लिए धरती पर आते हैं। देवताओं के साथ अबीर-गुलाल लगाकर होली खेलना ही रंग पंचमी के त्योहार को दर्शाता है।

रंग पंचमी की पूजा के लिए घर की किसी साफ़ जगह पर चौकी के ऊपर कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान राधा-कृष्ण की मूर्ति-प्रतिमा या तस्वीर घर के उत्तर दिशा में स्थापित करें।

पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कराएं सभी देवी-देवताओं जलाभिषेक करें और तांबे का जल से भरा कलश मूर्ति के पास रखा जाता है।

मूर्ति पर कुमकुम से तिलक लगा कर देवी-देवताओं को चंदन, धूप, फूल और फल अर्पित किए जाते हैं,और फूलों की माला से सजाया जाता है।

सभी देवी-देवताओं को गुलाल लगाने के बाद होली की तरह खूब अबीर-गुलाल लगाया और उड़ाया जाता है वायुमंडल में रंग उड़ाने से या शरीर पर रंग लगाने से व्यक्ति के अंदर सकारात्मक शक्तियों का संचार होता है और आस-पास मौजूद नकारात्मक शक्तियां क्षीण हो जाती हैं। देवी देवताओं को तरह तरह के व्यंजनों का भोग लगाएं।

राधा कृष्ण की मूर्ति और मंदिर में यदि सम्भव हो तो गाय के घी का दीपक जलाकर पूरी श्रद्धा भक्ति से राधा कृष्ण जी की आरती की जाती है और क्षमा प्रार्थना करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। भजन कीर्तन भी कर सकते हैं। अपने बनाए गए प्रसाद मे भोग का कुछ भाग मिलाकर सभी को प्रसाद का वितरण किया जाता है।


नाग पंचमी

नाग पंचमी कब मनाते है ?

हिंदू कैलेंडर के अनुसार नाग पंचमी श्रावण मास (जुलाई अगस्त) के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है,

श्रावण मास में मलमास लगने की वजह से कभी कभी श्रावण मास अट्ठावन दिनों का हो जाता है।

नाग पंचमी क्यों मनाते हैं ?

श्रावण महीने में मनाया जाने वाला एक हिंदू त्योहार है, जिसमें अनुयायी सांपों की पूजा करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु और उनके पुत्र राजा परीक्षित जिनके पुत्र जनमेजय थे। जनमेजय को जब पिता की मृत्यु का कारण सर्पदंश का होना पता चला, तो उसने बदला लेने के लिए सर्पसत्र नामक यज्ञ का आयोजन किया, परन्तु नागों की रक्षा के लिए यज्ञ को ऋषि आस्तिक मुनि ने श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन रोक दिया और इस कारण तक्षक नाग के बचने से नागों का वंश बच गया। आग के ताप से नागों को बचाने के लिए ऋषि ने उन पर कच्चा दूध डाल दिया, तभी से नाग पंचमी मनाई जाने लगी और नाग देवता को दूध चढ़ाने की परम्परा शुरू हो गई।


नाग पंचमी कैसे मनाईं जाती हैं ?

नाग पंचमी की पूजा दरवाज़ों के दोनों ओर गोबर से सर्पों की आकृति बनाई जाती है और धूप-पुष्प से उनकी पूजा की जाती है

इंद्रांणी देवी की पूजा की जाती है

दही, दूध, अक्षत, जल, पुष्प, और नेवैद्य से उनकी पूजा की जाती है

नाग चित्र या मिट्टी की सर्प मूर्ति को लकड़ी की चौकी पर स्थापित किया जाता है

हल्दी, रोली, चावल, और फूल चढ़ाकर नाग देवता की पूजा की जाती है

नागदेव की सुगंधित पुष्प और चंदन से पूजा की जाती है

ॐ कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा का जाप किया जाता है

ॐ भुजंगेशाय विद्महे, सर्पराजाय धीमहि, तन्नो नाग: प्रचोदयात्

ॐ सर्पाय नमः

ॐ श्री भीलट देवाय नम:

ॐ नवकुलाय विद्महे, विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प प्रचोदयात्

नाग मूर्ति को कच्चा दूध, घी, और चीनी मिलाकर अर्पित किया जाता है

पूजा करने के बाद सर्प देवता की आरती उतारी जाती है

नाग पंचमी की कथा सुनी जाती है

इसी तरह से शाम को भी पूजा आरती की जाती है

पूजा आरती के बाद दान आदि देकर व्रत का पारण किया जाता है

नाग पंचमी पर क्या नहीं करना चाहिए

नाग पंचमी पर सपेरों के सांपों को दूध नहीं पिलाना चाहिए।

किसी भी नुकीली और धारदार वस्तुओं जैसे चाकू, सूई का प्रयोग सिलाई कढ़ाई के लिए भी नहीं करना चाहिए।


ऋषि पंचमी

ऋषि पंचमी कब मनाईं जाती है ?

पंचांग अनुसार ऋषि पंचमी भाद्रपद मास( अगस्त - सितम्बर) के पांचवें दिन मनाया जाने वाला एक हिंदू उत्सव है, ऋषि पंचमी को आकाश पंचमी व्रत भी कहते हैं।यह हरतालिका तीज के दो दिन बाद और गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाई जाती है।

ऋषि पंचमी क्यों मनाई जाती है ?

पुराणों के अनुसार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने ऋषि पंचमी के व्रत को पापों को दूर करने वाला बताया है माना जाता है कि सबसे शुभ दिनों में से एक सप्त ऋषियों की पूजा के साथ व्रत को करने से महिलाएं दोष मुक्‍त हो जाती हैं और व्रत रखने से व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति की ओर अग्रसर होता है।

ऋषि पंचमी पर सात महान ऋषियों, ऋषि मुनि वशिष्ठ, कश्यप, विश्वामित्र, जमदग्नि, अत्रि, गौतम और भारद्वाज की पूजा की जाती है।

ऋषि पंचमी का व्रत विशेष तौर पर महिलाएं ही करती हैं शास्त्रों में इस व्रत को महिलाओं के पाप नष्ट कर, मासिक धर्म के समय धार्मिक कार्यों के सम्बंधित रूप को देखकर, बेहतर स्वास्थ्य देने वाला बताया गया है। ऋषि पंचमी का व्रत अज्ञानता वश हुईं गलतियों को दूर करने वाला भी होता है।

ऋषि पंचमी कैसे मनाईं जाती है:

ऋषि पंचमी की पूजा विधि

ऋषि पंचमी व्रत पूजन के लिए प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्‍नान कर लें और स्वच्छ वस्‍त्र धारण करें।

घर के मंदिर या आंगन में गोबर से चौक बना कर ऐपन या रंगोली से सप्‍त ऋषि बनाएं। सप्तऋषियों की प्रतिमाओं को स्थापित करने से पूर्व पंचामृत में स्नान कराएं और उन पर चन्दन का लेप लगाकर फूलों एवं सुगन्धित पदार्थों, धूप, दीप, आदि अर्पण करना चाहिए।

मिट्टी, तांबा, पीतल के कलश की स्‍थापना करना अति आवश्यक है।

सप्‍त ऋषि को धूप, घी का दीपक दिखाकर फल-फूल चढ़ाएं और भोग लगाएं।

ऋषि पंचमी व्रत कथा सुनने के बाद मंत्र जाप, आरती, भजन करें और सभी भक्तों को प्रसाद वितरण करें।


ऋषि पंचमी कथा प्रथम

Rishi Panchami Katha

विदर्भ देश में उत्तक नाम के ब्राह्मण अपनी पतिव्रता पत्नी के साथ निवास करते थे उनके परिवार में एक पुत्र व एक पुत्री थी, ब्राह्मण जी ने अपनी पुत्री का विवाह अच्छे परिवार में कर दिया परंतु काल के प्रभाव स्वरुप पुत्री के पति की अकाल मृत्यु हो जाती है, और वह विधवा होकर अपने पिता के घर लौट आती है, अचानक एक अर्धरात्रि में पुत्री के शरीर में कीड़े उत्पन्न होने लगते है़

अपनी कन्या के शरीर पर कीड़े पड़ता देखकर माता पिता दुख से व्यथित हो जाते हैं और पुत्री को उत्तक ॠषि के पास ले जाते हैं और उनसे अपनी पुत्री के शरीर दोष के विषय में जानने की चेष्टा करते हैं।

उत्तक ऋषि अपने ज्ञान से उस कन्या के पूर्व जन्म का पूर्ण विवरण उसके माता पिता को बताते हैं और कहते हैं कि कन्या पूर्व जन्म में ब्राह्मणी थी और इसने एक बार रजस्वला होने पर

भी घर बर्तन इत्यादि छू लिये थे और काम करने लगी बस इसी पाप के कारण इसके शरीर पर कीड़े पड़ गये हैं

शास्त्रों के अनुसार रजस्वला स्त्री का कार्य करना निषेध है परंतु इसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और इसे इसका दण्ड भोगना पड़ रहा है ऋषि कहते हैं कि यदि यह कन्या ऋषि पंचमी का व्रत करे और श्रद्धा भाव के साथ पूजा तथा क्षमा प्रार्थना करे तो उसे अपने पापों से मुक्ति प्राप्त हो जाएगी, इस प्रकार कन्या द्वारा ऋषि पंचमी का व्रत करने से उसे अपने पाप से मुक्ति प्राप्त होती है।

पौराणिक ग्रंथों एवं शास्त्रों में लिखी बातों का क्या कोई वैज्ञानिक आधार भी है, विज्ञान के अनुसार भी रजस्वला

स्त्री को शारीरिक श्रम, मानसिक और आध्यात्मिक साधना नहीं करनी चाहिए।

अन्य कथा अनुसार

श्री कृष्ण जी ने युधिष्ठर जी को एक कथा सुनाई थी, कथा अनुसार जब वृजासुर का वध करने के कारण इन्द्र को ब्रह्म हत्या का पाप लगा तो उसने इस पाप से मुक्ति पाने के लिए ब्रह्मा जी से प्रार्थना की, ब्रह्मा जी ने इन्द्र पर कृपा करके उनके पाप को चार भागों में बांट दिया था, जिसमें प्रथम भाग अग्नि की ज्वाला में, दूसरा नदियों के लिए वर्षा के जल में, तीसरे पर्वतों में और चौथे भाग को स्त्री के रज में विभाजित करके इंद्र देवता को शाप से मुक्ति प्रदान करवाई थी।

ॠषि पंचमी का व्रत शरीर,मन और आत्मा की शुद्धि के लिए ही हर स्त्री को करना चाहिए, पुरुषों के लिए भी ऋषि पंचमी का व्रत लाभकारी सिद्ध होता है।