गणेश उत्सव-गणेश जन्मोत्सव-गणेश चतुर्थी

गणेश चतुर्थी कब मनाते हैं ?

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास(अगस्त-सितम्बर) के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी, विनायक चविथि, या विनयगर चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।

गणेश चतुर्थी मनाने की शुरुआत कैसे हुई, क्या है इसका इतिहास

गणेश चतुर्थी क्यों मनाते हैं ?

गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। गणेश उत्सव का पर्व गणेश चतुर्थी के साथ आरंभ होता है और समापन गणेश विसर्जन के साथ अनंत चतुर्दशी को होता है।

किसी भी नए कार्य की शुरूआत से पहले भगवान गणेश की पूजा करने की परंपरा है, गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है जो हमारे जीवन में आने वाले सभी दुख- दर्द को दूर करते हैं।

गणेश चतुर्थी दस दिनों तक क्यों मनाई जाती हैं ?

गणेश उत्सव दस दिनों तक मनाने का कारण है कि वेद व्यास जी ने भगवान गणेश से महाभारत ग्रंथ लिखने की प्रार्थना की, गणेश जी ने वेद व्यास जी से कहा कि जब तक आप बिना रुके बोलते रहेंगे तब तक मैं लिखता रहूंगा, तब दस दिनों तक बिना रुके गणेश जी ने महाभारत लिखी थी। जब वेदव्यास जी ने देखा, तो गणेश जी का तापमान बहुत बढ़ा हुआ और उनके ऊपर धूल, मिट्टी चढ़ गई थी, जिसके कारण दसवें दिन उन्हें नदी में स्नान करवाया गया, इसी उपलक्ष्य में गणेश उत्सव मनाने की परम्परा शुरु हो गई है।

गणेश उत्सव पुनः किसने शुरू किया ?

गणेश उत्सव मनाने की परंपरा महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज के समय से है, दुर्भाग्यवश बाहरी आक्रान्ताओ के आक्रमणों से गणपति उत्सव पर भी रोक लगना स्वाभाविक था। परन्तु आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इस उत्सव को फिर से शुरू करने का प्रयास किया और1893 में सार्वजनिक गणेश पूजन का आयोजन किया, जिसका उद्देश्य सभी जातियों और धर्मों को एक साझा मंच देना था।

गणेश चतुर्थी कैसे मनाते हैं :

गणेश उत्सव का त्योहार तीन चरणों में सम्पन्न होता है जो इसकी भव्यता, एकजुटता और सनातन संस्कृति को दर्शाता है।

प्रथम चरण में गणेश जी की मिट्टी से बनी मूर्ति लाल कपड़े या चुनरी से ढक कर अत्यंत उत्साह पूर्वक ढोल,गाजे बाजे के साथ पूरे रास्ते उत्सव मनाते हुए सगे संबंधियों के साथ लाते हैं। घर पर उनका स्वागत किया जाता है और ससम्मान पूर्वक ऊंचे मंच पर पूर्व में पश्चिम में या उत्तर-पूर्व दिशा में विराजमान करते हैं।

द्वितीय चरण में बप्पा को गंगाजल से स्नानादि के बाद वस्त्र, जनेऊ,अक्षत, चंदन का तिलक लगाएं, उन्हें पान,फूल, दूब घास, धूप, दीप, शमी पत्ता, पीले पुष्प और फल चढ़ाते हैं।

भगवान गणेश को मोदक, एवं लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए, और बप्पा की प्रातःकाल एवं सायं काल को पूजा, भजन, कीर्तन, आरती करनी चाहिए।

तृतीय चरण में श्री गणेश को डेढ़ दिन, तीन दिन, पांच दिन और सात दिन अपने घर पर रखतें हैं। गणपति विसर्जन से पूर्व विधि विधान पूर्वक पूजा करनी चाहिए। बप्पा का गंगाजल से स्नान करें और गणेश जी को नए वस्त्रों से सुसज्जित करके तिलक लगाएं,

लकड़ी का आसन बनाकर उस पर गंगाजल छिड़कें और स्वस्तिक बना लें उस पर पीला कपड़ा बिछाकर गणेश जी की मूर्ति रखें।

गणेश जी को लाल चन्दन, लाल पुष्प, दूर्वा, अक्षत, फल, मोतीचूर के लड्डू या मोदक पान, सुपारी, धूप-दीप आदि चढ़ाते हैं। गणपति विसर्जन से पहले एक पोटली में लड्डू और दक्षिणा बांधकर गणपति के हाथ में रख दें,घर के सभी लोग मिलकर हवन,आरती करें और 'गणपति बप्पा मोरिया रे' का जयकारा लगाते हुए गाजे बाजे के साथ अबीर रंग गुलाल लगाते और उड़ाते हुए किसी नदी, तालाब या महासागर में विसर्जित करने के लिए ले जाते हैं।

प्रार्थना, भजन और भक्ति गीत भगवान गणेश के प्रस्थान का प्रतीक, मूर्ति को धीरे से जल में विसर्जित करें। आप पर्यावरण अनुकूल मिट्टी की मूर्तियों का उपयोग भी कर सकते हैं।

गणेश जी की मूर्ति या प्रतिमा को जल में धीरे-धीरे प्रवाहित करें एकदम से छोड़ें या पटकें नहीं विसर्जन करते समय श्री गणेश मंत्रों का जाप निरंतर करते रहते हैं।

गणेशोत्सव का समापन गणपति बप्पा मोरया अगले बरस तू जल्दी आना के जयघोष के साथ अनंत चतुर्दशी को सम्पूर्ण होता है।

गणेश विसर्जन करने के लिए यदि बाहर जाना सम्भव न हो तो आप घर पर ही इन चरणों का पालन कर सकतें हैं, विसर्जन के लिए बड़े पात्र,टब या बाल्टी में शुद्ध जल भरें, इसमें गंगाजल और दुर्बा घास डालें, पूजा और आरती करें,

गणेश प्रतिमा को सीधे जल से भरे पात्र में गणेश मंत्र एवं जयघोषों के उच्चारण के साथ धीरे -धीरे रखें और अगले वर्ष तू फिर से आना के जयघोष के साथ अनंत चतुर्दशी को विसर्जन सम्पन्न हो जाता है।

घर पर विसर्जन के बाद वाले पानी को इधर-उधर फेंकें नहीं, और न उसे किसी के पैरों में पड़ने दें, इस जल को कुछ समय बाद पेड़ों या गमलों में प्रवाहित कर दें।