हिंदू पंचांग की प्रमुख चतुर्दशी व्रत

अनंत चतुर्दशी

अनंत चतुर्दशी कब मनाते है?

पंचांग के अनुसार अनंत चतुर्दशी व्रत भाद्रपद (अगस्त-सितम्बर) माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को रखा जाता है।

अनंत चतुर्दशी क्यों मनाते हैं?

पौराणिक कथा अनुसार भगवान विष्णु ने चौदह लोकों की रक्षा करने के लिए चौदह रूप धारण किए थे, इसलिए अनंत चतुर्दशी के दिन विष्णु जी के अनंत रूपों की पूजा की जाती है।

अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु का व्रत, पूजा-अर्चना करने से प्राणियों के जीवन में कष्टों का अंत होने लगता है और प्रत्येक व्रती को अनंत सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं। यह पर्व विशेष प्रभाव कारी माना जाता है।

अनंत चतुर्दशी के दिन ही दस दिनों तक चलने वाला गणेश उत्सव गणेश जी के विसर्जन के साथ सम्पन्न हो जाता है।

महाभारत में कौरवों ने छल से जुए में पांडवों को हरा दिया था, तब पांडवों को अपना सम्पूर्ण राजपाट छोड़ कर वनवास जाना पड़ा, इस दौरान पांडवों ने बहुत कष्ट उठाए, परन्तु एक दिन भगवान श्री कृष्ण पांडवों से मिलने वन गये, भगवान श्री कृष्ण को देखकर युधिष्ठिर ने कहा कि, हे मधुसूदन हमें इस पीड़ा से निकलने का और पुनः राजपाट प्राप्त करने का उपाय बताएं,

श्रीकृष्ण ने कहा, हे युधिष्ठिर! तुम विधिपूर्वक अनंत भगवान का व्रत करो, इससे तुम्हारा सम्पूर्ण कष्ट दूर हो जाएगा और तुम्हारा खोया राज्य पुन: प्राप्त हो जाएगा, इस पर युधिष्ठिर ने पूछा कि, अनंत भगवान कौन हैं? इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा कि यह भगवान विष्णु के ही रूप हैं चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं

श्रीकृष्ण की आज्ञानुसार युधिष्ठिर ने परिवार सहित अनंत भगवान का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पाण्डवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों को पराजित किया तथा चिरकाल तक राज्य करते रहे अनंत भगवान के पूजन से उनके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं।

अनंत चतुर्दशी कैसे मनाते हैं?

अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान अनंत (विष्णु) की पूजा की जाती है। इस दिन चौदह गांठ वाला अनंत सूत्र कलाई पर बांधने का विशेष महत्व होता है।

पूजन के लिए प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर स्वच्छ पीले रंग के वस्त्र धारण करें, भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।

सर्वप्रथम कलश स्थापना अष्टदल कमल के साथ करें।

भगवान विष्णु की मूर्ति, प्रतिमा या तस्वीर पर केसर, कुमकुम, हल्दी, फूल, अक्षत आदि अर्पित करते हैं।

भोग लगाने के लिए मिष्ठान, फल अर्पित करें।

अनंत सूत्र के लिए कुमकुम, केसर या हल्दी से रंगकर बनाया हुआ कच्चे डोरे का चौदह गांठों वाला अनंत परिवार में जितने सदस्य हैं, उतनी ही संख्या में भगवान विष्णु जी को अनंत रक्षा सूत्र अर्पित करें।

इसके साथ ही भगवान विष्णु को अक्षत, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, इत्र, चंदन, नैवेद्य आदि से पूजन करें।

फिर भगवान विष्णु की आरती करें और उनके मंत्रो का जाप जरूर करें

अनंत चतुदर्शी के दिन केले के पौधे की करें।

“ऊं अनंताय नम: या अनंन्तसागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव।

अनंतरूपे विनियोजितात्माह्यनन्तरूपाय नमो नमस्ते।।”

का जाप करते रहते हैं।

अनंत सूत्र को महिलाएं अपने बाएं हाथ के बाजू में और पुरुष दाहिने हाथ के बाजू में बांध लेंगे, रात्रि में सोते समय अनंत सूत्र को उतार दें और अगले दिन किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर देते हैं।

अनंत सूत्र का धागा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत फल देने वाला माना गया है।

यह व्रत धन-पुत्रादि की कामना से किया जाता है।

इस व्रत का पारण ब्राह्मणों को भोजन, दान दक्षिणा करके करना चाहिए। इसके बाद पूरा परिवार प्रसाद ग्रहण करता है।


बैकुण्ठ चतुर्दशी

बैकुंठ चतुर्दशी कब मनाते हैं?

हिंदू पंचांग अनुसार कार्तिक (अक्टूबर नवम्बर) माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी मनाते हैं।

बैकुंठ चतुर्दशी क्यों मनाते हैं?

विष्णु भगवान चातुर्मास तक जो आषाढ़(जून-जुलाई) शुक्ल की एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक(अक्टूबर-नवम्बर)शुक्ल की एकादशी तक रहता है, सृष्टि का सम्पूर्ण दायित्व, कार्यभार भगवान भोलेनाथ को देकर विश्राम मुद्रा में चले जाते हैं, जो देव उठानी एकादशी के दिन जागते हैं। भगवान भोलेनाथ सृष्टि का कार्यभार भगवान विष्णु को बैकुंठ चतुर्दशी के दिन देते हैं इस उपलक्ष्य में समस्त देवी-देवता हर्ष और उल्लास में बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व देव दिपावली के रूप में मनाते हैं।

बैकुंठ चतुर्दशी कैसे मनाते हैं?

बैकुंठ चतुर्दशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर मंदिर में या घर के मंदिर में भगवान शिव और विष्णु की मूर्ति को गंगा जल से स्नान कराकर चौकी पर स्थापित कर गोपी चंदन का तिलक, अक्षत लगाएं, पुष्प माला अर्पित करें, देशी घी का दीपक जलाएं

भोग लगाया जाता है। भगवान शिव को भांग धतूरा बेलपत्र अर्पित करें, भगवान विष्णु को कमल का फूल और श्रंगार अर्पण करते हैं। भगवान शिव और भगवान विष्णु जी का मंत्र,चालीसा का पाठ करके, विष्णु सहस्रनाम पाठ करें तत्पश्चात आरती की जाती है।

चतुर्दशी के दिन पूजा, पाठ, जप, एवं व्रत करने से भक्तों को बैकुंठ की प्राप्ति होने की सम्भावना रहती है। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भर उपवास रखते हैं और पूजा, अर्चना, उपासना करते हैं।

मध्यप्रदेश के उज्जैन में भगवान महाकाल की सवारी पूरे गाजे बाजे के साथ निकाली जाती है।

मंदिर, सरोवर, नदी पर सायं काल में चौदह दीपक जलाना शुभ माना जाता है।


नरक चतुर्दशी छोटी दीवाली:

नरक चतुर्दशी कब मनाते हैं?

हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी ( चौदस) तिथि को नरक चतुर्दशी या छोटी दीवाली मनाई जाती है। नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी, रूप चौदस, नरक चौदस, या काली चौदस भी कहते हैं।


नरक चतुर्दशी क्यों मनाते हैं?

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री विष्णु के अवतार भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर आज के दिन ही नरकासुर राक्षस का वध करके सोलह हजार से अधिक महिलाओं को नरकासुर के नरक से मुक्त कराया था।

बंगाल में काली चौदस का सम्बन्ध मां दुर्गा के संहारक स्वरूप मां काली से भी है जिन्हें असुरों, राक्षसों, अधर्मियों का वध करके सन्तोष की प्राप्ति होती है। हम भी काली चौदस के दिन मां काली की पूजा करके ईष्र्या, द्बेष, लोभ, मोह आदि बुराईयों को त्याग कर भक्ति भाव अपनाएं।

दक्षिण भारत में भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा नरक चतुर्दशी के दिन की जाती है इस दिन दैत्यराज राजा बलि के अत्याचार से भगवान श्री विष्णु ने वामन अवतार धारण करके देवताओं को मुक्ति दिलाई थी।

रूप चतुर्दशी का सम्बन्ध मृत्यु के राजा यमराज से भी है मान्यता है कि यम की पूजा करने से अकाल मृत्यु का खतरा टल जाता है शाम को दिया जलाकर इनकी पूजा की जाती है।


नरक चतुर्दशी कैसे मनाते हैं:

नरक चतुर्दशी की पूजा शाम को स्नान आदि से निवृत्त होकर भारतीय वस्त्र धारण कर के भगवान श्री कृष्ण, माता काली का रोली, अक्षत से तिलक कर फल, पुष्प, दीप नैवेद्य अर्पित करें, वस्त्र के लिए कलावा चढ़ायें, जल का लोटा भरकर रख लें जो पूजन के बाद अगली सुबह तुलसी मैया को अर्पित कर देते हैं। शुद्ध घी का दीपक जलाकर इनके सम्मुख रखें, और सरसों के तेल के चौदह दिये जलाकर घर के बाहर रख दें।

राजा यम के लिए आटे का बना हुआ एक दीपक घर के मुख्य द्वार पर अवश्य जलाएं।