ईद-उल-अज़हा (क़ुरबानी की ईद)


ईद-उल-अजहा कब मनाते हैं

इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने धुल्ल हिज की दसवीं तारीख को ईद उल अजहा या बकरीद का त्योहार मनाया जाता है।

ईद-उल-फितर के ढाई महीने बाद ईद-उल-अजहा आती है, जिसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है।


ईद-उल-अजहा क्यों मनाते हैं

ईद-उल-अज़हा का अर्थ बलिदान का पर्व होता है।

यह पैगम्बर इब्राहीम द्वारा ईश्वर के आदेश पर अपने पुत्र को कुर्बान करने की इच्छा की याद में मनाया जाता है।

इस दिन कुर्बानी देने का दिन होता है, इसलिए इसे ईद-ए-कुर्बानी भी कहा जाता है।

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, हज़रत इब्राहिम को अल्लाह का पैगंबर बताया जाता है। हज़रत इब्राहिम हमेशा लोगों की भलाई के कार्यों में लगे रहते हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सेवा के कार्यों में ही लगा दिया। लेकिन कई सालों तक उन्हें कोई संतान नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने खुदा ही बहुत इबादत की। खुदा की इबादत करने के बाद उन्हें चांद सा बेटा हुआ। जिसका नाम इस्माइल रखा गया।

बेटे के पैदा होने के बाद इब्राहिम को एक सपना आया।सपने में उन्हें आदेश दिया गया कि खुदा की राह में कुर्बानी दो। उन्होंने पहले ऊंट की कुर्बानी दी। इसके बाद उन्हें फिर से सपना आया और उसमें आदेश दिया गया कि अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दी जाए।

इब्राहिम ने अपने सभी जानवरों की कुर्बानी देने के बाद फैसला लिया कि वह अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देंगे। इब्राहिम ने अपनी पत्नी से कहा कि बेटे इस्माइल को नहलाकर तैयार करें। उनकी पत्नी ने इस्माइल को तैयार कर दिया। इब्राहिम अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए लेकर चले गए।

अल्लाह ने जब इब्राहिम की निष्ठा देखी तो उन्होंने बेटे की कुर्बानी को बकरे की कु्र्बानी में बदल दिया। जब इब्राहिम अपने बेटे की कुर्बानी दे रहे थे तो उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी।कुर्बानी देने के बाद जब उन्होंने अपनी आंखें खोली तो इस्माइल को खेलते हुए देखा। इब्राहिम के विश्वास और कुर्बानी को देखकर अल्लाह ने उन्हें पैगंबर बना दिया। इसके बाद से ही बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई।


ईद-उल-अजहा कैसे मनाते हैं

मुस्लिम समुदाय के सभी लोग बकरा ईद के दिन अल सुबह की नमाज ईदगाह में अदा करते हैं। उसके बाद बकरे की कुर्बानी दी जाती है।

मुस्लिम धर्म के लोग अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करते हैं इस्लाम में सिर्फ हलाल के तरीके से कमाए हुए पैसों से ही कुर्बानी जायज मानी जाती है।

कुर्बानी चौपाया जानवर जैसे बकरा, भेड़ या ऊंट की दी जाती है कुर्बानी के वक्त ध्यान रखना होता है कि जानवर को कोई चोट ना लगी हो, बीमार ना हो, और अपाहिज भी नहीं होना चाहिए।

ईद के दिन बकरे की कुर्बानी को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक हिस्सा गरीबों, जरुरतमंदों को बांटा जाता है। दूसरा रिश्तेदारों के लिए और तीसरा हिस्सा अपने घर के लिए रखा जाता है।


ईद-उल-अज़हा (क़ुरबानी की ईद)