pink and brown round food on brown wooden tray
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होली

होली कब मनाई जाती है:

हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन महीने के पूर्णिमा की शाम को होलिका दहन किया जाता है परन्तु भद्रा काल नहीं होना चाहिए और अगले दिन चैत्र के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर रंगों की होली खेली जाती है।


होलिका दहन क्यों करते हैं:

होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।

हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को आशीर्वाद मिला था कि उसे कोई भी अग्नि जला नहीं सकती है हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को बहन होलिका की गोद में बैठाकर लकड़ी की शैय्या पर बैठने का आदेश दिया और उसमे आग लगा दी परंतु विष्णु भक्त पहलाद की निष्काम भक्ति के कारण उसकी बुआ होलिका तो अग्नि में जलकर भस्म हो गई परन्तु भक्त पहलाद को कोई क्षति नहीं पहुंची तभी से यह त्यौहार होलिका दहन के रूप में मनाया जाता है।

वैज्ञानिक शास्त्रों के अनुसार पवित्र अग्नि के जलाने से निकलने वाले धुएं से कई कीटाणु नष्ट होकर वातावरण शुद्ध होता है और नई स्फूर्ति से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

होलिका दहन कैसे करते हैं-

होलिका दहन के लिए सूखीं लकड़ियों, पुआल, घास और गोबर के उपलों को एक निश्चित जगह पर एकत्र कर लेते हैं। होलिका में अग्नि से पूर्व विष्णु भक्त प्रहलाद की पूजा की जाती है होली के चारों ओर कच्चे सूत को तीन या सात बार परिक्रमा करते हुए लपेटा जाता है शुद्ध जल में गंगा जल मिलाकर होली के चारों तरफ समर्पित किया जाता है अब होलिका में आग लगाई जाती है पूजन की अन्य सामग्री जैसे चावल, पुष्प, बताशे, कपूर,गुलाल, नारियल आदि को भी होलिका में समर्पित किया जाता है होलिका में बडकुल्ले भी जलाये जाते हैं जिन्हें होली से कुछ दिन पहले गाय के गोबर से छोटे छोटे गोले बनाकर उसमें बीच में छेद करके धूप में सुखा लेते हैं सूख जाने पर इसकी माला को अग्नि में जलाया जाता है जो हानिकारक कीटाणु को समाप्त करने में मदद करती है होलिका दहन के बाद उसमें गन्ने के अग्र भाग, गेहूं की बालियां,हरे चने की बाली, को तीन, पांच या सात परिक्रमा करते हुए भूना जाता है।


रंगों की होली क्यों मनाते हैं:

फूलों के रंग की होली का संबंध भगवान श्री कृष्ण से भी है पौराणिक कथानुसार बाल रूप श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा से कहा कि मेरा रंग सांवला और राधा रानी का रंग गोरा क्यों है तब मैया ने ठिठोली करते हुए कहा कि तुम्हारा जो रंग है उसी रंग को राधा के चेहरे पर भी लगा दो तो दोनों का रंग एक जैसा हो जाएगा बाल रूप श्रीकृष्ण ने अपने ग्वाल मित्रों के साथ मिलकर टेसू और पलाश के फूलों से रंग बनाकर ब्रज में राधा रानी के चेहरे को जमकर रंग लगाया और जो भी गोपियां राधा को बचाने आई उन्हें भी कान्हा के ग्वालों ने रंग से सराबोर कर दिया लेकिन गोपियों ने भी अपनी-अपनी मटकियों में भरे हुए जल, दूध, दही और मक्खन को ग्वालों के ऊपर डाल दिया

ब्रज में आज भी लड्डू होली, फूलों की होली, लठमार होली खेली जाती है।


रंगों की होली कैसे मनाते हैं :

प्रातः काल सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण को अबीर-गुलाल से तिलक लगाने के साथ माता, पिता, भाई, बहनों को गुलाल लगा कर बड़ों का आशीर्वाद और छोटों को प्यार देना चाहिए। फिर घर में बने हुए पकवान दही बड़ा,गुझिया,आम पन्ना, ठंडाई आदि ग्रहण किया जाता है उसके बाद होली का फाख शुरू होता है टोली बनाकर ढ़ोल ताशों के साथ अपने रिश्तेदारों, दोस्तों, मिलने वालों के यहां रंग लगाने, पिचकारी से सराबोर का सिलसिला शुरू हो जाता है जो दोपहर तक चलता है नहाने आराम करने के बाद शाम को अपने मिलने वालों को मिठाई, नमकीन, गुझिया देकर होली की बधाई दी जाती है।



होली एक रंगीन त्योहार है, जिसमें खुशियों का रंग फैलता है।