बैसाखी

बैसाखी कब मनाते हैं ?

हिंदू पंचांग के अनुसार सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तब यह पर्व मनाया जाता है बैसाख के महीने में विशाखा नक्षत्र की मौजूदगी से बैसाखी का पर्व फसल के पकने पर मनाया जाता है। बिहार में सूर्य के सम्मान में वैसाख के रूप में केरल में विशु, तमिलनाडु में पुथंडु, आसाम में रोंगाली बिहू और पश्चिम बंगाल में नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है।


बैसाखी क्यों मनाते हैं ?

भगवान बद्रीनाथ की यात्रा भी बैसाखी के पावन दिन से ही प्रारंभ होती है। बैसाखी खुशीयों और समृद्धि का पर्व है इस दिन सूर्य की उपासना की जाती है सिख धर्म के अनुयायी चौदह अप्रैल को प्रतिवर्ष सिख नव वर्ष के रूप में मनाते हैं। किसानों के लिए बैसाखी का पर्व उत्साह, नव ऊर्जा बढ़ाता है क्योंकि अप्रैल महीने तक रबी की फसल पक जातीं हैं और उनकी कटाई शुरु हो जाती है। सूर्य मेष राशि में गोचर करते हैं इसलिए इसे मेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है।

आपको बताते हैं कि बैसाखी पर सूर्य देव की पूजा क्यों की जाती है क्या लाभ है।

बैसाखी पर हर साल सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं इसी के साथ सौर वर्ष का आरंभ होता है मेष राशि चक्र की पहली राशि है और इस राशि में सूर्य उच्च के होते हैं ऐसे में सूर्य की उपासना करने से सूर्य कुंडली में सुप्रभावी होते हैं सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह कहा जाता है सूर्य राजा सत्ता आरोग्य हृदय पिता अधिकारी के कारक ग्रह माने गए हैं कुंडली में सूर्य की मजबूत स्थिति होने पर लाभ और अनुकूल परिणाम प्राप्त होते हैं इसलिए सूर्य जब राशि चक्र की पहली राशि में प्रवेश करते हैं तो सूर्य की आराधना की जाती है ताकि सूर्य मेष राशि से मीन तक सभी राशियों से संचार करते हुए पूरे साल जीवन में उन्नति और लाभ प्रदान करें।

यह अप्रैल में मनाया जाने वाला प्रसिद्ध हिंदू त्योहारों में से एक है वैसे तो पूरे भारत में बैसाखी का पर्व बड़े ही हर्षोल्लाह के साथ मनाया जाता है लेकिन पंजाब में इस पर्व को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है इस दौरान खेतों में रवि की फसल पककर लहराती है किसानों के मन में फसलों को देखकर खुशी मिलती है वह अपनी खुशी का इजहार बैसाखी के पर्व को मनाकर करते हैं।

सिख धर्म के अनुसार बैसाखी बनाने को लेकर कई ऐतिहासिक महत्व मौजूद हैं इस पर्व को लेकर मान्यता है कि इस दिन १६९९ में सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी खालसा पंथ की स्थापना के लिए सिखों को संगठित किया था वही ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है की बैसाखी का उत्सव सिख धर्म के नवे गुरु तेज बहादुर सिंह की शहादत के साथ शुरू हुआ था।


बैसाखी कैसे मनाते हैं:

बैसाखी पर गुरूद्वारा से नगर कीर्तन निकाला जाता है बैसाखी बड़ी धूमधाम और उत्साह से मनाने के लिए रंगीन मेलों का आयोजन करते हैं सभी लोग पारम्परिक पोशाक में लोकगीत गाकर भांगड़ा पर नृत्य करते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएं दी जाती है।

सूर्य पूजा विधि क्या है, बैसाखी के दिन उगते सूर्य को तांबे के लोटे में गुड़ और कुमकुम मिलाकर जल अर्पित करें, इसके बाद लाल कनेर के फूल, अक्षत, हाथ में काले तिल लेकर सूर्य देव को अर्पित करें आप चाहे तो इन्हें जल में भी मिला सकते हैं जल में गंगाजल जरूर डालें इसके बाद सूर्य देव को फल मिठाई अर्पित करें अंत में पंखा और जल से भरा घड़ा, कच्चा आम उपलब्ध हो तो उसे भी अर्पित करें और उसे उत्सर्ग करें वही पूजा करने के बाद सभी सामग्री किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद को दान कर दें इस दिन सूर्य पुराण का पाठ करना और दान देना उत्तम माना जाता है।