दशहरा

दशहरा कब मनाया जाता है ?

हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न में दशहरे का त्यौहार मनाया जाता है इसे विजयदशमी का उत्सव भी कहते हैं। शारदीय नवरात्र और दुर्गा पूजा के अंतिम दिन अत्यंत उत्साह और आस्था से यह त्यौहार मनाया जाता है। नये कार्य शुरू हो जाते हैं|

दशहरा क्यों मनाते हैं ?

हिन्दू मान्यता के अनुसार दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में मनाया जाता है।

नवरात्र‍ि के दसवें दिन दशहरा क्यों मनाते हैं?

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक मां दुर्गा की उपासना करने के बाद दसवें दिन लंका नरेश अहंकारी रावण का वध कर उसके अहंकार को समाप्त किया था। इसलिए विजयदशमी का पर्व प्रतिवर्ष धूम-धाम से मनाया जाता है।

अन्य पौराणिक कथाएं

मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर विजय प्राप्त की।

पाण्डव वनवास।

दशहरा कैसे मनाते हैं ?

दशहरा के दिन राम दरबार, मां दुर्गा, देवी अपराजिता, शस्त्र, वाहन की पूजा की जाती है। राज्यों में दशहरा का पर्व अलग-अलग प्रकार से बहुत हषो॑ल्लास से मनाया जाता है।

भारत और विश्व के कई देशों में दशहरा के नौ दिन पहले से राम लीला का मंचन शुरू हो जाता है दशमी के दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले को भगवान श्री राम का अभिनय करने वाले कलाकार के धनुष बाणों से भेद कर अग्नि से जलाया जाता है। विजयदशमी के दिन हम लोग भी अपनी बुराईयों को जलाने का प्रण लेते हैं इस दिन आतिशबाजी और रोशनी भी की जाती है। घरों के मुख्य द्वार पर दिये जलाकर अंधकार को किया जाता है।

दशहरा के दिन विशेष मेले का आयोजन भी किया जाता है जहां तरह तरह के झूले, खेल - खिलौने चाट पकौड़ी का आनंद लिया जाता है।

दुर्गा पूजा का आयोजन भारत के साथ कई देशों में मनाया जाता है नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ रूपों का उत्सव बहुत उत्साह से मनाया जाता है दसवें दिन विजयदशमी को मां दुर्गा और अन्य देवी देवताओं की मूर्ति को गाजे बाजे जुलुस के साथ नदी या समुद्र तट पर ले जाकर जल में विसर्जित किया जाता है।

घर के आंगन या किसी भी जगह को साफ सुथरा करके वहां पर लाल मिट्टी से लीप कर उसके ऊपर एक चौक बनाया जाता है जिसे दशहरा कहते हैं चौक में एक आकृति बनाई जाती है गेहूं के आटे या चावल के आटे से आकृति बना लेते है आप चाहे तो रंगोली के कलर से भी आकृति बना सकते हैं कहीं पर तो कहा जाता है कि यह भगवान श्री रामचंद्र जी हैं और कहीं पर कहा जाता है कि यह रावण बनाया जाता है लेकिन उनके हाथ में जो धनुष और तीर है उससे प्रतीत होता है कि यह श्री रामचंद्र जी हैं। स्वास्तिक, गणेश जी के प्रतिरूप बीच में बनायें जाते है।

गाय के गोबर से दस खेपड़े बनाएं जातें हैं यदि गाय का गोबर नहीं मिल पाता है तो उसकी जगह पर गेहूं के आटे को गूठ करके भी खेपड़े बना सकते हैं उन्हें फिर गाय को खिला दिया जाता है अब हल्दी से भी चौक पर लेंगे।

नवरात्रों में जो ज्वार हम उगाते हैं उनका बहुत महत्व होता है उन्हें भी पूजा में जरूर रखें थोड़े से फूल, अक्षत रखकर एक दीपक जला लेते हैं भगवान श्री रामचंद्र जी का ध्यान करते हुए यह पूजन करते हैं घर के पुरुष मुख्य रूप से पूजन करते हैं और घर की सभी महिलाएं, बच्चे चारों ओर बैठकर इस पूजन में सहयोग करते हैं लोटे में जल लेकर फूल या पत्ते से जल का छिंटा देकर सभी को स्नान करा देंगे। रोली, चंदन से सभी खेपड़ों का टीका करते हैं हल्दी से भी टीका कर सकते हैं हल्दी बहुत ही शुभ मानी जाती है। दीपक का भी पूजन करेंगे टीका करेंगे।

दोपहर के समय इसका पूजन किया जाता है अभिजीत मुहूर्त में जो विजय मुहूर्त होता है उसी में यह पूजन किया जाता है,

वस्त्र रूपी मौली सभी को अर्पित करेंगे,

सभी को कलाबा बांधा जाता है सभी खेपड़ों को अलग-अलग वस्त्र रूपी कलावा अर्पित करते हैं आटा, हल्दी समर्पित करेंगे फूल अर्पित करेंगे,

दस खेपड़ों के पास जो दस कुल्लियां रखीं जाती है उन पर कुमकुम और हल्दी लगा लीजिए उसके अंदर खील भरी जाती है खील के ऊपर एक बताशा रखा जाता है और बाद में यह प्रसाद के रूप में वितरित कर दी जाती है सब कुल्लियों के ऊपर नवरात्रि में ऊगाये ज्वार को समर्पित करेंगे। परिवार के सभी सदस्यों के दोनों कान पर थोड़े-थोड़े से जवारे को बहन बेटी लगाती है विजयदशमी पर उन्हें विजय तिलक करती हैं और भाई उन्हें कुछ ना कुछ उपहार देते हैं जैसे भाई दूज या रक्षाबंधन पर देते हैं उत्तराखंड में कुछ महिलाएं बालों में भी लगाती है।

अपनी कलम, किताब और अस्त्र-शस्त्र-शास्त्र चौक के पास रख कर उनका पूजन किया जाता है गन्ने का भी पूजन कहीं कहीं किया जाता है क्योंकि इसी दिन से गन्ने की फसल से गुड़ बनना प्रारंभ हो जाता है चौक की परिक्रमा भी की जाती है आरती करते हैं अब हम प्रार्थना करेंगे कि हमें विद्वान बनाए सद्बुद्धि दे परंतु हमारे अंदर अपने ज्ञान का अहंकार बिल्कुल नहीं होना चाहिए। लोटे का जल सूर्य भगवान को अर्घ्य दे देते हैं।

भोग लगाने के लिए मुख्य रूप से खील बताशे का भोग लगाया जाता है जलेबी, बूंदी के लड्डू, पंचामृत, दाल भात रोटी का भी भोग लगाया जाता है और जो कुल्लियां हमने भरी थी उनको प्रसाद स्वरूप वितरित किया जाता है। दशहरा एक विजय पर्व होता है एक उत्साह पर्व होता है एक वीरता शौर्य से भरा हुआ पर्व होता है तो हमें इसे पूरे परिवार सहित हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए।