कविता

शब्दों की छाया, हार अथवा जीवन की झलक है कविता।

BAAKI SAB

शब्दों की छाया, हार अथवा जीवन की झलक है कविता।शब्दों की छाया, हार अथवा जीवन की झलक है कविता।
कविता: भावनाओं का सहेजा संग्रह, शब्दों की मधुर छांव।
  • बढे चलो बढे चलो - सोहन लाल द्विवेदी

  • खुनी हस्ताक्षर - गोपाल प्रसाद व्यास

  • मेरी याद

धरती का जीवन देखकर,

सोचा मैं भी कर जाऊं कुछ।

देती है जैसे यह सबको सब कुछ,

मैं भी दे सकता हूं कुछ ना कुछ।।

पर पुनः सोचा है क्या मेरे पास,

जो मैं कुछ किसी को दे जाऊंगा।

पर कर सकता हूं मैं भी कार्य बड़ा,,

सोच ये मैंने धरती को तोड़ा थोड़ा।।

चला दिया फिर छाती पर उसकी हल,

चन्द बीज सरसों के बिखरा दिए।

जल से फिर नहला दिए,,

कठिन परिश्रम रंग लाया।।

कुछ कोपलों ने सर बाहर चमकाया,

सोच रहा था मैं इसको सब खाएंगे।

होंगे प्रसन्न मेरे ही गुण गाएंगे,,

बस हो गया मुझे भी अभिमान।।

लो कर दिया मैंने एक बड़ा काम,

पर क्या यह सच था?वास्तव में।

क्या मैंने कार्य बड़ा किया था ?

अरे वो तो मेरा ही अज्ञान था,

वह तो धरती का कार्य महान था।

धरती पर ही तो मैंने बीज बोए थे,,

इसने ही तो उन्हें गर्भ में पाला था।।

किया था उसने स्वयं, नाम मेरा दे डाला था।।

एक और उपकार, धरती ने मुझ पर कर डाला था।।


-विशाल सोनी

हंसता रहे तू सदा |

बसंत जीवन में तेरे आता रहे ।।

सफलताएं तेरे कदम चूमे ।

तू यूं ही मुस्कुराता रहे ।।

हर सुबह तेरा सवेरा हो ।

हर शाम तेरी निराली हो ।।

प्रत्येक गतिविधि तेरी शान में ।

वृद्धि करने वाली हो ।।

क्षण क्षण नए पुष्प खिले ।

जीवन बने तेरा लुभावना ।।

भाग्य से अधिक तुझे मिले ।

है मित्र की यही कामना ।।

-विशाल सोनी

मौत पर यार मेरी मत आना तुम।

लिपटकर सीने से मत रो जाना तुम

सो गया हूं मैं मुझे मत जगाना तुम

रूठा हूं तुमसे मैं मुझे ना मनाना तुम

यादों में आए हम तो भूल जाना तुम

गली से निकले तो आंसू न बहाना तुम

पड़ा है जनाजा उसे मत उठाना तुम

जल रहा हूं मैं, दूर खड़े हो जाना तुम

दिल से तुम्हें चाहा यह मान जाना तुम

वहां जब मिलना तो पहचान जाना तुम


हेमेंद्र सिंह

  • मित्रता

  • उपकार

पुरानी यादों की बेबस चौखट पर खड़ा हूं।

दिल करता है दरवाजा खोल अन्दर चलूं।।

कुछ खट्टी, कुछ मीठी खिड़कियों से देखूं।

गली से आती मिट्टी की सौंधी सी खुशबू लूं।।

चहकता हुआ बचपन, निखरता हुआ यौवन।

ढलती हुई जवानी और ढहता हुआ बुढ़ापन।।

किसी की आंखों का तारा,कोई था मुझे प्यारा।

कोई खेला मेरे साथ, कोई खेला था मुझसे।।

किसी ने दिया सहारा,कोई ले गया विश्वास।

तन्हा यादों की दीवारें,ढह गई छतों के साथ।।

वो दादा की सैर और दादी के हाथों का अचार।

भूल गए हम नाना नानी मामा मामी का प्यार

।।

हेमेंद्र सिंह

  • यादे