कविता

शब्दों की छाया, हार अथवा जीवन की झलक है कविता।

BAAKI SAB

शब्दों की छाया, हार अथवा जीवन की झलक है कविता।शब्दों की छाया, हार अथवा जीवन की झलक है कविता।
कविता: भावनाओं का सहेजा संग्रह, शब्दों की मधुर छांव।
  • बढे चलो बढे चलो - सोहन लाल द्विवेदी

  • खुनी हस्ताक्षर - गोपाल प्रसाद व्यास

  • मेरी याद

मौत पर यार मेरी मत आना तुम।

लिपटकर सीने से मत रो जाना तुम

सो गया हूं मैं मुझे मत जगाना तुम

रूठा हूं तुमसे मैं मुझे ना मनाना तुम

यादों में आए हम तो भूल जाना तुम

गली से निकले तो आंसू न बहाना तुम

पड़ा है जनाजा उसे मत उठाना तुम

जल रहा हूं मैं, दूर खड़े हो जाना तुम

दिल से तुम्हें चाहा यह मान जाना तुम

वहां जब मिलना तो पहचान जाना तुम


हेमेंद्र सिंह

पुरानी यादों की बेबस चौखट पर खड़ा हूं।

दिल करता है दरवाजा खोल अन्दर चलूं।।

कुछ खट्टी, कुछ मीठी खिड़कियों से देखूं।

गली से आती मिट्टी की सौंधी सी खुशबू लूं।।

चहकता हुआ बचपन, निखरता हुआ यौवन।

ढलती हुई जवानी और ढहता हुआ बुढ़ापन।।

किसी की आंखों का तारा,कोई था मुझे प्यारा।

कोई खेला मेरे साथ, कोई खेला था मुझसे।।

किसी ने दिया सहारा,कोई ले गया विश्वास।

तन्हा यादों की दीवारें,ढह गई छतों के साथ।।

वो दादा की सैर और दादी के हाथों का अचार।

भूल गए हम नाना नानी मामा मामी का प्यार

।।

हेमेंद्र सिंह

  • यादे