लोहड़ी

लोहड़ी पंजाबी त्योहार, रबी फसल की कटाई के अवसर पर मनाया जाता है।


लोहड़ी कब मनाते हैं?

हिंदू पंचांग के अनुसार लोहड़ी पौष माह ( जनवरी) में मकर संक्रांति से एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद मनाई जाती है।

लोहड़ी क्यों मनाते हैं?

लोहड़ी का पर्व कृषि व प्रकृति को समर्पित है यह सुख, समृद्धि, खुशी और खुशहाली का भी प्रतीक है।

लोहड़ी का त्यौहार सूर्य देव और अग्नि को समर्पित है इस त्यौहार में नई फसलों को अग्नि देव के माध्यम से सभी देवताओं तक पहुंचा कर आभार व्यक्त किया जाता है।

लोहड़ी पर दुल्ला भट्टी की कहानी

सिख समाज में लोहड़ी के साथ दुल्ला भट्टी की कहानी भी जुड़ी हुई है। इस दिन पंजाबी समाज के लोग अग्नि जलाकर परंपरागत रूप से भांगड़ा करते और दुल्ला भट्टी की प्रशंसा में गीत गायन भी करते हैं। एक बार उन्होंने दो अनाथ बहनों को उनके चाचा से बचाया था, जिसने उनको जमीदारों को बेच दिया था। दुल्ला भट्टी ने लोहड़ी की रात दोनों बहनों की शादी करवा दी और एक सेर शक्कर उनकी झोली में डालकर विदाई कर दी। मान्यता है कि इस घटना के कारण भी लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।

लोहड़ी पर माता सती के त्याग रूप की भी पूजा होती है, पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब माता सती के पिता राजा दक्ष ने महायज्ञ किया था, तब भगवान शिव और माता सती को आमंत्रित नहीं किया गया था। लेकिन माता सती अपने पिता के न बुलाने पर भी यज्ञ में पहुंच गईं, जहां उनका और भगवान शिव का राजा दक्ष द्वारा अपमान किया गया। अपमान से क्रोधित देवी सती ने खुद को हवन कुंड के हवाले कर दिया था। देवी सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव ने राजा दक्ष का घमंड से भरा हुआ सिर काट दिया था। दक्ष को जब अपनी गलती का अहसास हुआ और ब्रह्माजी द्वारा प्रार्थना किए जाने पर भगवान शंकर ने दक्ष प्रजापति को उसके सिर के बदले बकरे का सिर प्रदान करवाकर यज्ञ संपन्न करवाया। इसके बाद जब देवी सती ने पार्वती के रूप में जन्म लिया था, तब पार्वती जी की ससुराल में लोहड़ी के अवसर पर दक्ष प्रजापति ने उपहार भेजकर क्षमा मांगी और भूल सुधारने का प्रयास किया। तभी से नवविवाहित कन्याओं के लिए मायके से वस्त्र व उपहार भेजा जाता है।

भगवान श्रीकृष्ण से भी लोहड़ी पर्व का सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। कंस ने भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए नंदगांव में लोहिता राक्षसी को भेजा था। उस समय सभी लोग मकर संक्रांति के पर्व को लेकर तैयारी कर रहे थे। अवसर का लाभ उठाकर लोहिता ने श्रीकृष्ण को मारना चाहा लेकिन कृष्णजी ने लोहिता का ही वध कर दिया। इस वजह से भी मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।


लोहड़ी कैसे मनाते हैं?

लोहड़ी पर्व का उद्देश्य आपसी प्रेम, सौहार्द, और आपस में मिलजुल कर रहने के साथ एक दूसरे की मदद करना होता है।

लोहड़ी के दिन लकड़ियों व उपलों को घर परिवार व रिश्तेदारों द्वारा गली, मौहल्ले की खुली जगह में जलाया जाता है सभी लोग पवित्र अग्नि की पूजा, परिक्रमा करते हैं जिसमें मूंगफली, रेवड़ी, तिल, गुड़, नई फसल, भुने हुए मक्की के दानों को डालकर पवित्र अग्नि के चारों ओर ढोल - भांगड़ा के साथ नाचते गाते हुए खुशी मनाते हैं और भगवान से अच्छी पैदावार होने की कामना करते हैं। अविवाहित लड़कियां-लड़के टोलियां बनाकर गीत गाते हुए घर-घर जाकर लोहड़ी मांगते हैं, उन्हें हर घर से मुंगफली, रेवड़ी एवं पैसे दिए जाते हैं। जिस घर में बच्चा पैदा होता है या नई नई शादी होती है उस घर से विशेष रुप से लोहड़ी मांगी जाती है।

परिवार, पडोसियों, रिश्तेदारों को लोहड़ी पर घर बुला कर रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है और एक दूसरे को लोहड़ी की बधाइयां दी जाती हैं।