हिंदू पंचांग की प्रमुख तीज व्रत

हिंदू धर्म के अनुसार कितनी प्रमुख तीज होती है?

हिंदू पंचांग के अनुसार तीन प्रमुख तीज हरियाली तीज, हरतालिका तीज और कजरी तीज का महत्व बताया गया है।

सुहागन महिलाओं के लिए तीज का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण है। तीज के दिन सुहागिनें महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, और सोलह श्रृंगार कर भगवान शंकर, माता पार्वती की पूजा करती हैं। तीज का व्रत करने से सुहागिनों को सौभाग्यवती रहने का वरदान मिलता है, पतिव्रता पत्नी अपने पति की लंबी आयु और परिवार की खुशहाली, समृद्धि के लिए तीज पर व्रत, कथा, उपासना करने से सदा सुहागन बनी रहती हैं।


हरियाली तीज

हरियाली तीज कब मनाते हैं

पंचांग अनुसार प्रत्येक वर्ष सावन (जुलाई- अगस्त) माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली या हरतालिका तीज मनाई जाती है।

हरियाली तीज को श्रावणी तीज के नाम से भी जानते हैं।

नाग पंचमी से दो दिन पहले हरियाली तीज मनाई जाती है।


हरियाली तीज क्यों मनाते हैं

हरियाली तीज का व्रत भगवान भोलेशंकर और माता पार्वती के मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार अगर

कन्या के विवाह में अड़चन हो रही है, विलम्ब हो रहा है तो उन्हें विवाह के शुभ योग के लिए हरियाली तीज का व्रत अवश्य करना चाहिए।

हरियाली तीज का त्यौहार बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है।

हरियाली तीज के दिन ही देवों के देव महादेव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।

भगवान शिवशंकर को पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने 107 जन्मों तक कठिन तप किया था।

माता पार्वती के कठिन तप से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने 108 वें जन्म में पार्वती जी से विवाह रचाया।

हरियाली तीज का दिन सुहागिनों और कुंवारी कन्याओं के लिए अति महत्वपूर्ण और मनोवांछित फल देने वाला होता है।


हरियाली तीज पूजन सामग्री–

कलश, चंदन, अक्षत, पीला वस्त्र, केले के पत्ते, बेलपत्र, भांग, धतूरा, शहद, चीनी, गाय का दूध, दही, गंगाजल, पंचामृत, सुपारी, नारियल, कपूर, घी, तेल, अबीर-गुलाल,कच्चा सूत,जनेऊ, शमी का पत्ता,अगरबत्ती, इत्यादि।

हरियाली तीज पर माता पार्वती को श्रृंगार सामग्री अर्पित करने के लिए हरे रंग की साड़ी, सोलह श्रृंगार में चुनरी, चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, कुमकुम, कंघी, बिछिया, मेहंदी, दर्पण, महावर, इत्र, इत्यादि सामग्री पूजन की थाली में होना आवश्यक है।


हरियाली तीज कैसे मनाते हैं

हरियाली तीज के दिन महिलाएं हरे रंग के वस्त्र पहनती हैं, कलाइयों में हरे रंग की चूड़ियां और हाथों में मेंहदी, पैरों में महावर लगाती हैं। सोलह श्रृंगार करके व्रत, पूजा, अर्चना करती हैं।

हरियाली तीज का व्रत करने के लिए अपना शुद्धिकरण करके अजमानी करते हैं भगवान का ध्यान और उनका आवाह्न करते हैं।

तीज की पूजा के लिए सर्वप्रथम चौकी के ऊपर हरा वस्त्र बिछाकर माता पार्वती और भगवान शंकर की मूर्ति, और शिवलिंग को गंगा जल, पंचामृत से स्नान कराते हुए ओम् नमः शिवाय मंत्र का जाप करते रहेंगे साथ में मां गौरी नमः ओम मां गौरी नमः का भी जाप करते रहते हैं।

सफेद चंदन या अष्टगन चंदन से जो भी आपके पास उपलब्ध हो उनका श्रृंगार करेंगे, बिल्व पत्र पर भी चंदन लगा कर अर्पित करेंगे।

तीज व्रत में मिट्टी के गौरी माता, शिव परिवार बना सकते हैं मिट्टी की गौरी माता की पूजा करना शुभ माना जाता है इन्हें बनाना बहुत आसान होता है धूप, दीप, दीपक जला लेते हैं दीपक, कलश का पूजन करेंगे, भगवान गणेश जी, माता पार्वती, भोले शंकर का टीका, वस्त्र रूपी कलावा, जनेऊ अर्पित करें।

गणेश जी को लाल पुष्प और दूर्वा अर्पित कर देते है सभी को पुष्प अर्पित करेंगे।

पुराणों के अनुसार इस दिन माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने पति रूप में प्राप्त होने का वरदान दिया था। माता पार्वती सभी को सुहाग देने वाली होती हैं माता गौरी को सिंदूर चढ़ाएंगे। हरियाली तीज के दिन माता पार्वती और भोले शंकर का पूजन किया जाता है सम्पूर्ण शिव परिवार का पूजन किया जाता है।

हरियाली तीज को आप निर्जल व्रत या बिना व्रत के भी पूजन कर सकते हैं, तीज को एक उत्सव के रूप में भी बना सकते हैं।

हल्दी, अक्षत, सुहाग की सामग्री फूल, धतूरा, शमी पत्र,आक का पत्र आदि अर्पित कर देते है कलश भगवान को माला अर्पित करें।

आज के दिन सुहाग की सामग्री दान भी दी जाती है क्योंकि कहते हैं जो भी हम दान करते हैं, वह बढ़ती है तो सुहाग की सामग्री आज के दिन यदि हम दान करते हैं तो हमारे सुहाग में वृद्धि होती है।

यह व्रत हम अखंड सौभाग्य के लिए पति के जीवन में आयु, कष्ट, रुकावट आदि को समाप्त करने के लिए करते हैं, संतान के जीवन में सुख लाने के लिए महिलाएं ही यह व्रत करती है

अविवाहित लड़कियां,जिनकी सगाई हो गई है वह भी इस व्रत को कर सकती हैं।

भोग में घेवर का बहुत महत्व होता है, आपने जो मिष्ठान बनाया है वह भी अर्पित करे सकते हैं, उसके बाद जो मौसमी फल आते हैं वह भगवान जी को भोग लगाएंगे, जल का भी भोग लगाएं।

उसके बाद कपूर की आरती करेंगे, सर्वप्रथम गणेश जी की आरती, भोलेनाथ की आरती करेंगे, माता गौरी की आरती करेंगे।

आरती करने के बाद भगवान से माता गौरी से प्रार्थना और क्षमा याचना करेंगे, इसके बाद आरती के ऊपर आप जल अवश्य फेर दें,

तीज के दिन गौरी मैया से सुहाग लेना शुभ माना जाता है इसके लिए साड़ी का जो पल्ला होता है उसका एक कोना लेकर गौरी माता से सुहाग लेना चाहिए पहले तो माता को सुहाग दान करते हैं फिर माता से सुहाग लेते हैं, यदि आपने पांच बार सुहाग दान किया है तो पांच बार ही माता से सुहाग लें, सुहाग ऐसे लेते हैं कि उनके जो माथे पर सिन्दूर लगाया है उसे अपने पाले पर लगाकर अपने माथे से लगा लेते हैं।

अब हाथ में अक्षत, पुष्प लेकर हरियाली तीज की कथा पढ़नी अथवा सुननी चाहिए।

प्रकृति में चारों ओर हरियाली होती है इसलिए हरे रंग का बहुत महत्व होता है, हरियाली तीज पर हरे वृक्ष जैसे आम, नीम आदि पर झूला डालकर झूलते हैं।

आजकल की सोसाइटी में तो झूले का बहुत प्रयोग किया जाता है बहुत बड़ा मेला लगाया जाता है तीज क्वीन भी चुनीं जाती हैं, महिलाएं बहुत ज्यादा सज धज करके इस त्यौहार में भाग लेती हैं और मनोरंजन करती है।

आप इस दिन छोटा सा हवन जरूर कर लें क्योंकि जो भी भोग सामग्री भगवान जी को अर्पित करते हैं वह अग्नि के माध्यम से प्राप्त होती है।

अगर आप गर्भवती हैं तो इतना कठिन व्रत बिल्कुल भी ना करें आप इस दिन पूजा पाठ कर लें उसके बाद पूरे दिन फलाहार खाते रहें।

हरियाली तीज और हरितालिका तीज दोनों एक जैसे होती है इनकी पूजा विधि एकदम समान होती है जो नियम हरितालिका तीज में होते हैं वही हरियाली तीज में भी माने जाते हैं।

आपको यदि पीरियड आ गया है तो आप यह पूजन अपने पति से, अपनी ननद से जेठानी से और जो भी घर में स्त्री हो या अपनी बेटी से भी इस पूजन को आप करवा सकती हैं।

आप व्रत सरल तरीके से कर रहे हैं तो शाम के समय जो भी भोग के साथ भगवान जी को माता पार्वती को चढ़ाया है उसको आप ग्रहण कर सकती हैं पानी पी सकती हैं परन्तु पूर्ण विधि विधान से कठोर नियमों से इस व्रत को कर रहे हैं तो इसमें व्रत का पारण अगले दिन भगवान का पूजन करने के बाद किया जाता है उसके बाद ही यह चौकी हटाई जाती है और व्रत सम्पूर्ण होता है व व्रत का फल भी मिलता है।

हरियाली तीज का व्रत अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और दांपत्य जीवन में खुशहाली के लिए रखा जाता है।

इस दिन महिलाएं झूला झूलती हैं, पारंपरिक तीज गीत गाती हैं, और भगवान शिव और देवी पार्वती की कहानियां सुनाती हैं।

इस व्रत को करवा चौथ से भी कठिन बताया जाता है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और अगले दिन सुबह स्नान और पूजा करने के बाद व्रत पूरा करके भोजन ग्रहण करती है। इस दिन स्त्रियों के मायके से श्रृंगार का सामान और मिठाइयां उनके ससुराल भेजी जाती हैं।

कजरी तीज

कजरी तीज कब मनाते हैं

हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद (अगस्त-सितम्बर) मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज मनाई जाती है।

कजरी तीज को कजली तीज, सातुड़ी तीज भी कहते हैं।

हरियाली तीज के पंद्रह दिन बाद और

रक्षाबंधन के तीन दिन बाद मनाई जाती है।


कजरी तीज क्यों मनाते हैं

सुहागिन महिलाओं के लिए यह व्रत बहुत महत्वपूर्ण होता है इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन माता पार्वती और भोले शंकर की विधि-विधान पूर्वक पूजा आराधना की जाती है अपने जीवनसाथी की लंबी आयु और उनके स्वास्थ्य कामना के लिए सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं।

कुंवारी कन्याएं भी इस दिन अच्छा वर पाने के लिए कजरी तीज का व्रत कर माता पार्वती और भोले शंकर की विधि विधान पूर्वक पूजा आराधना करती हैं।

कजरी तीज व्रत कथा

माता पार्वती और शिव जी की कथा भी तीज मनाने का मुख्य कारण है। जिसके अनुसार माता पार्वती ने शिव जी को प्राप्त करने हेतु 108 वर्ष तक कड़ी तपस्या की थी, और शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया था। उन्होंने प्रसन्न होकर पार्वती जी को यह वरदान भी दिया की इस दिन जो भी स्त्री व्रत रखेगी और इस कथा को सुनेंगी और सुनाएंगी, उसे सौभाग्वती होने का आशीर्वाद प्राप्त होगा।

एक पौराणिक कथा के अनुसार मध्य भारत में कजली नाम का एक वन था, जो राजा दादूरै के क्षेत्र में पड़ता था। इस वन में राजा अपनी रानी के साथ विहार करने आया करते थे, और यह वन उनके प्रेम का साक्षी था। लोग इस वन के नाम पर कजरी लोक गीत गाया करते थे, धीरे धीरे यह गीत दूर-दूर तक गाया जाने लगा।

कुछ समय पश्चात् राजा की मृत्यु हो गयी, और रानी उसकी चिता में सती हो गयी। उन दोनों के अमर प्रेम के कारण वहां के लोग कजरी के गीत पति-पत्नी के प्रेम के प्रतीक के रूप में गाने लगे।

कजरी तीज के पर्व पर गाय की पूजा का विशेष महत्व होता है। संध्या काल में व्रत तोड़ने से पहले महिलाएं गऊ माता को सत्तू के साथ चना और गुड़ खिलाती हैं।


कजरी तीज की पूजन सामग्री शंकर-पार्वती की मूर्ति, नीम की डाली, तीज माता की फोटो, पूजा की चौकी, मिट्‌टी, दूध, जल, धूप,दीपक

केले के पत्ते, बेलपत्र, कुमकुम, हल्दी, काजल, मेहंदी, रोली, धतूरा, जनेऊ

सुपारी, नारियल, अक्षत, कलश, दूर्वा, घी, चंदन, गुड़, शहद, पंचामृत, मिश्री

नाक की नथ, गाय का कच्चा दूध, अबीर, गुलाल, वस्त्र, नींबू, गेंहू, इत्र, फूल आदि

कजरी तीज पर चने की दाल, शक्कर, घी मिलाकर सातु जरुर बनाया जाता है

कजरी तीज कैसे मनाते हैं

कजरी तीज पूजा विधि (Kajari Teej Puja Vidhi)

इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें।

शुभ मुहूर्त में पूजन से पूर्व मिट्टी या गोबर से दीवार के सहारे एक तालाब जैसी आकृति बनाएं, उसके पास नीम की टहनी को रोप देते हैं।

पूजा की चौकी पर शंकर-पार्वती, तीज माता की प्रतिमा को गंगा जल से स्नान कराकर स्थापित करें, चंदन, तिलक लगाकर फल, पुष्प,वस्त्र रुपी कलावा, जनेऊ अर्पित करें भगवान शिव को भांग धतूरा बेलपत्र अर्पित करें।

कजरी तीज पर सत्तू का भोग लगाया जाता है, नीमड़ी माता को चुनरी ओढ़ा कर नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली और काजल की 13-13 बिंदिया अंगुली से लगाकर पूजन करें। घूप, दीपक जलाकर भगवान शंकर माता पार्वती जी की आरती करें।

तालाब में दीपक की रोशनी में ककड़ी, नींबू, नीम की डाली, नाक की नथ, आदि देखें और इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करें।


हरतालिका तीज

हरतालिका तीज कब मनाते हैं

हिंदू पंचांग में हरतालिका तीज प्रत्येक वर्ष भाद्र (अगस्त-सितम्बर) मास के शुक्‍ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है।


हरतालिका तीज क्यों मनाते हैं

हरतालिका तीज का महत्‍व बहुत विशेष माना जाता है। इस व्रत को सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे कठिन माना गया है। मान्‍यता है कि भाद्रमास के शुक्‍ल पक्ष की तृतीया को माता पार्वती ने मिट्टी का शिवलिंग बनाकर भगवान की पूजा की और कठोर तप किय था। उनकी पूजा से प्रसन्‍न होकर भगवान शिव ने उनको अपना जीवन साथी चुना। तभी से इस दिन को सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए हरतालिका तीज के रूप में मनाती हैं और निर्जला व्रत करती हैं।

इस दिन दिन व्रत करने से भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्‍न होकर सुहागिनों को अखंड सौभाग्‍य का आशीर्वाद देते हैं।

इस व्रत को सुहागिन महिलाओं के साथ कुंवारी कन्‍याएं भी अच्‍छा पति पाने के लिए करती हैं।

हरतालिका तीज का निर्जला व्रत रखकर सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना भगवान शिव और माता पार्वती से करती हैं, और अविवाहित कन्याएं इस व्रत को अच्छे वर की प्राप्ति के लिए रखती है।


हरतालिका तीज कैसे मनाते हैं

कजरी तीज के पंद्रह दिन बाद

हरतालिका तीज के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें सोलह श्रृंगार करें एक दिन पहले हाथों में मेंहदी रच लें। पूजन के लिए हाथ में जल लेकर व्रत करने का संकल्प करें। माता पार्वती, शिव जी और गणेश जी की मिट्टी की प्रतिमाएं बनाकर एक चौकी पर स्थापित करें। देवी पार्वती को वस्त्र, चुनरी और अन्य श्रृंगार के सामान से तैयार करें। श्रृंगार का सामान जैसे चूड़ी, बिंदी, आलता, नेलपॉलिश, लिपस्टिक, लाल कपड़े आदि पार्वती जी को चढ़ाएं।

फल, फूल, धूप, चंदन, मिठाई, माला, दुर्वा, बेलपत्र और शमी पत्र अर्पित करें। शिव जी को भांग, धतूरा और सफेद फूल अर्पित करें। प्रतिमा के सामने दीपक और धूपबत्ती जलाएं।

हरतालिका तीज के दिन निर्जला उपवास के बाद रात में भजन कीर्तन और शुभ मुहूर्त पर पूजा करें।

उपवास के दौरान आप मंत्रों का जाप कर सकते हैं। भगवान शिव की पूजा करते समय 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप करें। मां पार्वती का पूजन करते समय 'ॐ उमायै नम:' मंत्र का जाप करें।

हरतालिका तीज व्रत कथा हाथों में अक्षत, पुष्प लेकर सुनें और सुनाएं।

कथा समाप्ति पर गणेश जी की आरती, शिव जी आरती और पार्वती जी की आरती कर अगले दिन पारण करने का विधान है।

हरतालिका तीज व्रत में दिन में शयन नहीं करना चाहिए, इसलिए पूरे दिन मन में भगवान शिव और माता पार्वती का सुमिरन करती रहें, सायं काल भगवान शिव और माता पार्वती को लकड़ी की साफ चौकी पर स्वच्छ वस्त्र बिछाकर स्थापित करें, देवी पार्वती को सोलह श्रृंगार अर्पित कर उनसे पति की लंबी आयु की कामना करें।

विधि विधान से पूजन उपरांत विवाहित स्त्रियां अपनी सास को सौभाग्य की सामग्री देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।

व्रत पूजा में भगवान शिव और माता पार्वती की पांच बार पूजा की जाती है हर पूजा से पहले स्नान करने की परंपरा है, पूरी रात जागरण करने के बाद अगले दिन व्रत का पारण किया जाता है।