प्रधानमंत्री कैसा होना चाहिए?

नमस्कार दोस्तों,कैसे हैं आप आशा करता हूं ठीक होंगे। दोस्तों आज कल कुछ लोग मुफ्त की सलाह बहुत दे रहे हैं कोई कह रहा है पढ़ें लिखे को ही वोट देना,तो कोई कह रहा है अनपढ़ हो क्या,अब भैया सोशल मीडिया पर जब यह इतना टेंड हो रहा है तो मैंने सोचा कि मैं भी अपना ज्ञान वर्धन कर लेता हूं|

भारत का प्रधानमंत्री पढ़ा लिखा तो होना ही चाहिए परंतु कितना पढ़ा लिखा होना चाहिए। क्या कोलंबस, दून स्कूल, हावँड, आक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी का पढ़ा हुआ ही होना चाहिए अगर आप ऐसा सोचते हो तो ग़लत है

क्योंकि कई ऐसे देशों के राष्ट्राध्यक्ष और प्रधानमंत्री इन जैसी यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए हैं वहां की स्थिति या तो आपने देखी नहीं है या देखना नहीं चाहते ख़ैर यह आपके विवेक पर निर्भर करता है कि आप क्या देखो और किसको वोट दो। परन्तु ऐसा कह के क्या आप भारत का संविधान लिखने वाली 299 लोगों की सभा के अध्यक्ष संविधान निर्माता बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर जी का अपमान नहीं कर रहे, अगर ऐसा होता तो उन्होंने अपने संविधान में लिखा होता है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रपति या मंत्रियों की कितनी एजुकेशन होनी चाहिए। और हां क्या सिर्फ आईएएस, पीसीएस, आईआरएस, पीपीएस या अन्य सिबिल सर्विसेस पास आउट करने वाला व्यक्ति ही अधिक समझदार हो सकता है जो व्यक्ति साक्षात्कार में फेल हो जाता है तो क्या वह उस व्यक्ति जिसने साक्षात्कार पास कर लिया है उससे कम बुद्धिमान हो जाता है नहीं, किसी भी परीक्षा को उत्तीर्ण करने वाला अभ्यर्थी तारीफ के तो काबिल है ही पर बहुत बड़ी डिग्री या नौकरी वाले की बुद्धि तीव्र हो सकती है परन्तु क्या किसी अन्य कार्य विशेष को देखने, करने और सोचने के नजरिए का ज्ञान उसे क्या बहुत अधिक हो जाता है।

कुछ लोग अंग्रेज और उनकी अंग्रेजियत के इस हद तक गुलाम हो गए हैं कि उनके अंदर ऐसी धारणा बैठा दी गई है कि अपने से कम पढ़े लिखे को वह अपने से कम बुद्धिमान समझते हैं उन्हें यह देखकर अन्दर ही अन्दर बहुत गुस्सा, जलन होती है कि हमसे कम किताबी ज्ञान और बिना डिग्री वाला हमसे ऊंचे पद पर आसीन कैसे हो गया। क्या अपने घरों में भी हम अपने माता-पिता, दादा-दादी जो हो सकता है हमसे कम डिग्री वाले या बिना डिग्री वाले हो उनको कम आंकते हैं कि आपने कुछ नहीं किया, आप कम पढ़े लिखे हो आप ऐसा नहीं कर सकते वैसा नहीं कर सकते हो परंतु आप को यह नहीं मालूम कि वह आपसे ज्यादा अनुभवी हैं उन्होंने अपनी जीविका चलाने के साथ सामाजिक राष्ट्रहित में भी अमूल्य योगदान दिया है।गृहकार्य,घर, नौकरी,दुकान या ऑफिस में बड़ी बड़ी डिग्री के बगैर उत्कर्ष कार्य करके दिखाया है|

मैं तो यह सोचता हूं कि क्या यह उन शोषित, वंचित, पीड़ित, मज़लूम और सताए हुए लोगों को बाहर रखने का विचार तो नहीं है जो अपने समाज,वर्ग का उत्थान और उससे अनुभव प्राप्त करते हुए एक ऐसे मुकाम पर पहुंच जाएं जहां से वह अपने समाज के साथ साथ सभी का शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार के माध्यम से जीवन का स्तर ऊंचा उठा सकते है बाकी सब लोग समझदार होते हैं किसी को विशेष राय देने की आवश्यकता नहीं होती है आप सब का धन्यवाद।